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दूसरा अध्याय

अन्य अवसरों पर वह व्यक्ति विशेष या कतिपय व्यक्तियों के हित का ध्यान रख सकता है। केवल उन्हीं मनुष्यों को, जिन के कार्यों का प्रभाव संसार या समाज पर पड़ता है, सार्वजनिक हित के विचार को ध्यान में रखना चाहिये। अब रहे वे काम जिन्हें आचारयुक्तता को ध्यान में रखते हुवे नहीं करना चाहिये चाहे उनका किसी विशेष दशा में अच्छा ही फल क्यों न हो। सो इन कामों के विषय में प्रत्येक विवेकशील कर्ता जान सकता है कि ये ऐसे काम हैं कि यदि साधारणतया उन्हें किया जाने लगे तो साधारणतया उनका फल बुरा ही होगा। सार्वजनिक हित को ध्यान में रखने की जितनी आवश्यकता उपयोगितावादी बताते हैं, उतनी आवश्यकता सब ही आचार शास्त्री बताते हैं क्योंकि उन सब का कहना है कि ऐसे काम नहीं करने चाहिये जो देखती आंखों समाज को हानि पहुंचाते हैं।

आचार के आदर्श के प्रयोजन को ठीक तौर से समझने में इससे भी अधिक भूल करने वाले तथा ठीक और गलत शब्दों के अर्थ ही न समझने वाले बहुधा यह आक्षेप करते हैं कि उपयोगितावाद आदमियों को सहानुभूति-शून्य बना देता है अर्थात् अन्य व्यक्तियों के प्रति मनुष्यों के नैतिक भावों को टणडा वर देता है। इस सिद्धान्त के मानने वाले कार्यों के शुष्क परिणामों ही का ध्यान रखते हैं और उन गुणों का विचार नहीं करते जिनके कारण ये कार्य होते हैं। यदि उनके इस कथन का यह अर्थ है कि उपयोगितावादी कर्ता के किसी काम के ठीक या गलत होने का निर्णय करने में कर्ता के गुणों का कुछ ख्य़ाल नहीं करते तो उनका यह आक्षेप केवल उपयोगितावाद ही पर नहीं है प्रत्युत आचार का कोई आदर्श या कसौटी ( Standard )