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उपयोगितावाद का अर्थ

आवेश के बाद की शान्ति को बद मज़ा समझते हैं, बजाय इसके कि जितना पहिले आवेश को सुखद समझते थे उसी के बराबर अब शान्ति को सुखद समझें। जब कि ऐसे मनुष्य जिन को देखती आंखों कोई दुःख नहीं होता जीवन से असन्तुष्ट हो जाते हैं तो इस का कारण साधारणतया यह होता है कि वे अपने अतिरिक्त किसी की परवा नहीं करते। ऐसे मनुष्यों के लिये, जिन्हें साधारणतया अपने इष्ट मित्रों और संबन्धियों से कुछ प्रेम नहीं होता है, जीवन के आवेश बहुत कम हो जाते हैं। ज्यूँ ज्यूँ अपने से संबन्ध रखने वाले सब सुखों की इति श्री करने वाली मृत्यु आयु बढ़ने के कारण निकटतर होती जाती है उन्हें जीवन शुष्क मालूम देने लगता है। किन्तु वे मनुष्य जो बाद में अपने प्रेम पात्रों को छोड़ जाते हैं तथा विशेषतया वे मनुष्य, जिन की प्रकृति मनुष्य जाति के भलाई के कामों में सर्वसाधारण से सहानुभूति रखने की हो जाती है, मृत्यु के सन्निकट होने पर भी जीवन में वैसाही भानन्द अनुभव करते हैं जैसाकि जवानी के जोश में तथा ख़ूब स्वस्थ होने की दशा में अनुभव किया करते थे। स्वार्थ-प्रियता के अतिरिक्त जीवन के असन्तोषकारी प्रतीत होने का दूसरा प्रधान कारण मानसिक संस्कृति की कमी है। संस्कृत मस्तिष्क-संस्कृत मस्तिष्क से मेरा मतलब तत्त्वज्ञानी के मस्तिष्क से नहीं है वरन् प्रत्येक ऐसा मस्तिष्क जिस के लिये ज्ञान-भण्डार का द्वार खुल गया है तथा जिस को उचित सीमा तक अपनी शक्तियों को काम में लाना सिखाया गया है-अपने चारों ओर के पदार्थों में अनन्त आनन्द का उद्गार अनुभव करता है। ऐसे मस्तिष्क को प्राकृतिक पदार्थों, कला के कारनामों, कविता की कल्पनाओं, मनुष्य जाति के रहन सहन के ढंगों