आती है। मनुष्य ऐसे आनन्दों का उपभोग करते हैं जो स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं यद्यपि वे जानते हैं कि स्वास्थ्य-रक्षा अधिक अच्छी है। फिर यह भी आक्षेप किया जा सकता है कि बहुत से मनुष्य जवानी के जोश में तो बड़े उदार होते हैं किन्तु जूं जूं आयु बढ़ती जाती है वे सुस्त तथा स्वार्थी होते जाते हैं। परन्तु मेरा यह विश्वास नहीं है कि ऐसे मनुष्य जिन की प्रकृति में यह साधारण परिवर्तन हो जाता है, जान बूझ कर उच्च आनन्दों के मुक़ाबले में निम्न कोटि के आनन्दों को पसन्द कर लेते हैं। मेरा विश्वास है कि निम्न कोटि के आनन्दों के उपभोग में संलग्न होने से पहिले ही वे उच्च कोटि के आनन्दों को अनुभव करने में असमर्थ हो जाते हैं। उच्च भावों की शक्ति बहुत से मनुष्यों में नाज़ुक पौधा होती है जो केवल विरुद्ध असर पड़ने ही से नहीं वरन् सहारा न मिलने ही के कारण बड़ी आसानी से नष्ट हो जाती है। बहुत से युवा पुरुषों में, यदि उन का पेशा जिस के करने के लिये वे विवश हुवे हैं तथा उन का समाज इस प्रकार की शक्ति का विरोधी है, यह शक्ति शीघ्र ही मृतावस्था को प्राप्त हो जाती है। जिस प्रकार मनुष्य अपनी मानसिक रुचियों (Intellectual tastes) को छोड़ देते हैं, उसी प्रकार समय तथा अवसर न मिलने के कारण उच्च भावनाओं को भी तिलाञ्जलि दे देते हैं और निम्न कोटि के आनन्दों का उपभोग करने में लग जाते हैं। ऐसा करने का कारण यह नहीं होता है कि वे निम्न कोटि के आनन्दों को जान बूझ कर अच्छा समझने लगते हैं। उनके ऐसा करने का कारण यही होता है कि या तो उनकी निम्न कोटि के आनन्दों तक ही पहुंच होती है या वे उच्च कोटि के आनन्दों का उपभोग
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उपयोगितावाद का अर्थ