भी परिमाण के लिये, जिस का कि वे उपभोग कर सकते हैं, छोड़ने के लिये तैयार न हों तो ऐसी दशा में हम उस इष्ट आनन्द को गुण की दृष्टि से इतना ऊँचा दर्जा देने में ठीक हैं जिस से कि तुलना करते समय परिमाण का विचार उपेक्षणीय रह जाय।
अब यह निर्विवाद बात है कि जो मनुष्य दोनों आनन्दों से बराबर परिचित हैं तथा दोनों के उपभोग करने की बराबर सामर्थ्य रखते हैं वे उस आनन्द को अच्छा समझते हैं जिस का उपभोग करने में उन को अपनी उच्चतर शक्तियों को काम में लाना पड़ता है। यदि किसी मनुष्य से कहा जाय कि अगर तुम जानवर बनना स्वीकार करो तो तुम को जितना आनन्द जानवर अनुभव कर सकता है उतने आनन्द को अनुभव करने का पूर्ण अवसर दिया जायगा, तो वह मनुष्य कभी भी इस प्रलोभन के कारण जानवर बनना स्वीकार न करेगा। कोई बुद्धिमान् मनुष्य मूर्ख बनना न चाहेगा, कोई पढ़ा लिखा मनुष्य पागल बनना पसन्द न करेगा, कोई सहानुभूत रखने वाला तथा अन्तरात्मा के आदेशानुसार कार्य करने वाला मनुष्य खुदग़र्ज़ तथा कमीन बनने के लिये तैयार न होगा, चाहे उनसे कितना ही क्यों न कहा जाय कि मूर्ख, पागल तथा बदमाश अपनी दशा में उनकी अपेक्षा अधिक सन्तुष्ट हैं। ऐसे आदमी कभी भी अपने विशेष आनन्द को सर्व साधारण द्वारा उपयुक्त आनन्द के लिये तिलांजलि न देंगे। यदि कभी ऐसा करने का विचार भी करेंगे तो बहुत ही दुःखित अवस्था में। ऐसे समय में वे उस दुःख से बचने के लिये अन्य किसी भी दशा में-चाहे वह कैसी ही घृणित क्यों न हो-परिवर्तित होना चाहते हैं। उच्च विकाश प्राप्त मनुष्यों को सुखी होने के लिये अधिक बातों की