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उपयोगितावाद का अर्थ

को इस कारण ऊंचा दर्जा दिया है कि वे अपेक्षाकृत अधिक कालतक स्थिर रहने वाले, सुरक्षित तथा सस्ते होते हैं-अर्थात्मा नसिक आनन्दों को ऊंचे दर्जे पर उन के असली गुणों की अपेक्षा अन्य कारणों की वजह से रक्खा है। और इन सब बातों में उपयोगितावादियों ने अपने दावे को भली भांति प्रमाणित कर दिया है। किन्तु उपयोगितावादी लोग अपने दावे को और भी उच्च आदर्श रखकर बिना किसी प्रकार की परस्पर विरोधात्मक बात कहे हुवे प्रमाणित कर सकते थे। इस बात को मानना उपयोगितावाद के विरुद्ध नहीं है कि कुछ प्रकार के आनन्द अधिक इष्ट तथा मूल्यवान हैं। यह बात बिल्कुल बेतुकी मालूम पड़ती है कि और सब चीज़ों पर विचार करते समय तो गुण तथा परिमाण दोनों पर विचार करें और आनन्द का विचार करते समय एकमात्र परिमाण ही को ध्यान में रक्खें।

यदि प्रश्न किया जाय कि भिन्न २ आनन्दों में गुण का क्या भेद हो सक्ता है तथा परिमाण के विचार को छोड़ कर और किस प्रकार एक आनन्द दूसरे आनन्द की अपेक्षा अधिक मूल्यवान हो सकता है तो ऐसे प्रश्न का एक ही उत्तर हो सकता है। वह उत्तर यह है:-यदि ऐसे सब मनुष्य या उन में से अधिकतर मनुष्य जो दो आनन्दों का अनुभव कर चुके हैं बिना किसी प्रकार के नैतिक दबाव के उनमें से एक आनन्द को दूसरे की अपेक्षा अधिक अच्छा आनन्द बतावें तो वही आनन्द अधिक इष्ट है। यदि वे मनुष्य जो दो आनन्दों से परिचित हैं एक आनन्द को, यह बात जानते हुवे भी कि उस आनन्द के प्राप्त करने में अधिक अशान्ति का सामना करना पड़ेगा, दूसरे आनन्द से अच्छा समझे और उस आनन्द को दूसरे आनन्दों के किसी