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पहिला अध्याय

इस कारण किन २ सहेतुक प्रमाणों के आधार पर उपयोगितावाद के सिद्धान्त को स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है। किन्तु सोच समझ कर उपयोगितावाद को मानने या न मानने से पूर्व उपयोगितावाद के ठीक २ अर्थ समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है। मेरे विचार में इस सिद्धान्त के फैलने में सब से बड़ी रुकावट यही पड़ी है कि साधारणतया इस के ठीक २ अर्थ नहीं समझे जाते हैं। उपयोगितावाद को समझने में जो बड़े २ भ्रम होरहे हैं यदि केवल उन का ही निवारण हो जाय तो भ़ी समस्या बहुत कुछ सीधी हो जाय तथा बहुत सी उलझनें दूर हो जायें। इस कारण उपयोगितावाद के आदर्श के समर्थन में शास्त्रीय कारण देने के पूर्व मैं उपयोगितावाद के सिद्धान्त ही के कुछ उदाहरण दूंगा जिस से साफ़ तौर से समझ में आ जाय कि इस सिद्धान्त के क्या अर्थ हैं तथा क्या अर्थ नहीं हैं तथा ऐसे आक्षेपों का उत्तर आजाय जो ऐसे मनुष्यों की ओर से किये जाते हैं जिन्होंने इस सिद्धान्त को ठीक तौर से नहीं समझा है। इसके बाद मैं दार्शनिक सिद्धान्त के रूप में उपयोगितावाद पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करूंगा।