लिये तथा प्रत्येक मनुष्य को उसका अधिकार दिलाने के लिये इन सिद्धान्तों के अनुसार बहुत से नियम बना लिये हैं।
न्यायाधीश का पहिला गुण निष्पक्ष होना है। न्याय की दृष्टि से निष्पक्षता भी एक फ़र्ज़ है। ऐसा होना इस कारण से भी आवश्यक है क्योंकि निष्पक्ष हुवे बिना न्यायाधीश अपने दूसरे फ़र्ज़ों को भली प्रकार अदा नहीं कर सकता। किन्तु केवल इसी कारण से मनुष्य के कर्तव्यों में समानता तथा निष्पक्षता के सिद्धान्तों को इतना ऊंचा दर्जा नहीं दिया गया है। एक प्रकार से समानता तथा निष्पक्षता के सिद्धान्त उन सिद्धान्तों के, जिन को हमने अभी प्रतिपादित किया है, उप-सिद्धान्त ( Corollaries ) समझे जा सकते हैं। यदि यह कर्तव्य है कि प्रत्येक मनुष्य के साथ वैसा ही बर्ताव किया जाय जिसका वह अधिकारी है अर्थात् भलाई के बदले भलाई और बुराई के बदले बुराई की जाय तो इस सिद्धान्त से यह बात भी अवश्य निकलती है कि उन सब मनुष्यों के साथ, जो समान बर्ताव किये जाने के अधिकारी हैं, समान बर्ताव किया जाय। उस समय की बात दूसरी है जब किसी इस से ऊंचे कर्तव्य के कारण ऐसा करना उचित न हो। इसी प्रकार समाज को, उन सब मनुष्यों के साथ जो समान बर्ताव के अधिकारी हैं समान बर्ताव करना चाहिये। सामाजिक तथा विभाजक ( Distributive) न्याय का यह सब से बड़ा संक्षिप्त ( Abstract ) आदर्श है। सब संस्थाओं तथा अच्छे नागरिकों का कर्तव्य है कि इस प्रादर्श को अपने सामने रक्खें। किन्तु इस बड़े नैतिक कर्तव्य की एक और भी अधिक गहरी नीव है। यह सिद्धान्त आचार-नीति के मूल-सिद्धान्त का साक्षात निःसरण ( Direct-emanation ) है। गौण