पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/१३९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३३
पांचवां अध्याय

है जब वह मनुष्य, जिस पर उनको पूरा भरोसा होता है, समय पड़ने पर धोखा देदेता है। किसी मनुष्य को उसकी भलाई का प्रतिकार न देना उसके साथ बड़ी ज्य़ादती है।

भलाई का बदला न पाने पर किसी मनुष्य को या उस से सहानुभूति रखने वाले को जितना बुरा मालूम होता है और किसी बात से उतना बुरा नहीं मालूम होता। इस कारण प्रत्येक मनुष्य के साथ वैसा बर्ताव करने का सिद्धान्त जिसका वह अधिकारी है अर्थात् भलाई के बदले भलाई तथा बुराई के बदले बुराई का सिद्धान्त केवल न्याय–युक्तता ( Justice ) के विचार ही में नहीं आता है वरन् इस सिद्धान्त से न्याय के भाव को वह दृढ़ता प्राप्त होती है जिसके कारण मनुष्य न्याय-युक्तता को केवल सुसाधकता या मस्लहत से ऊंचा दर्जा देते हैं।

न्याययुक्तता के बहुत से सिद्धान्त, जो संसार में प्रचलित हैं तथा साधारणतया व्यवहृत होते हैं, न्याय-युक्तता के उपरोक्त सिद्धान्तों को, कार्यरूप में परिणत करनेके कारण-मात्र ( Inst-- rumental ) हैं। मनुष्य केवल उस ही बात के लिये ज़िम्मेदार है जिस बात को उसने अपनी इच्छा से किया है या जिस बात को वह अपनी इच्छा से रोक सकता था। बिना किसी आदमी का बयान सुने उसको दोषी ठहराना अनुचित है। दण्ड अपराध के अनुसार ही होना चाहिये। ये सब बातें तथा इनसे मिलती जुलती बाते वे सिद्धान्त हैं जिनका यह आशय है कि बुराई के बदले ही बुराई हो तथा बिना बुराई के किसी के साथ बुराई न की जाय। ये साधारण सिद्धान्त अधिकतर न्यायालयों के कारण प्रचलित होगये हैं। न्यायालयों ने अपना काम ठीक रीति से करने के लिये अर्थात् दण्ड-पात्र को दण्ड देने के