ही कारण दण्ड या प्रतिकार तथा बुराई के बदले बुराई का न्याय के भाव के साथ घनिष्ट सम्बन्ध हो गया है तथा सब लोग इन बातों को न्याय के विचार में सम्मिलित कर लेते हैं। नेकी के बदले नेकी भी न्याय का एक आदेश है। यद्यपि इस आदेश की सामाजिक उपयोगिता प्रत्यक्ष है तथा यह आदेश इन्सानियत या मनुष्यता का प्राकृतिक भाव लिये हुवे हैं; किन्तु तत्क्षण ही इस आदेश का हानि या नुकसान के साथ उतना प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं दीखता जितना न्याय के बहुत साधारण उदाहरणों में दृष्टि-गोचर होता है। परन्तु चाहे प्रत्यक्ष में इस आदेश का हानि या नुक़सान के साथ कम संबंध मालूम पड़े किंतु वास्तव में कम नहीं है। जो आदमी दूसरों से लाभ उठाता है किन्तु आवश्यकता पड़ने पर उन आदमियों को लाभ का प्रतिकार नहीं देता अर्थात् उनके साथ भलाई नहीं करता वह उन लोगों को वास्तविक कष्ट पहुंचाता है क्योंकि इस बात से उनकी अत्यन्त स्वाभाविक तथा सहेतुक आशाओं पर पानी फिर जाता हैं। इस कष्ट का कारण लाभ उठाने वाला मनुष्य ही है क्योंकि वह लाभ पहुंचाने वाले मनुष्य के हृदय में आवश्यकता पड़ने पर भलाई किये जाने की आशा का अंकुर अप्रत्यक्ष रूप से बोता है। यदि यह मालूम होजाय कि जिसके साथ हम भलाई कर रहे हैं वह समय पड़ने पर हमारे साथ भलाई न करेगा, तो स्यात् ही कोई मनुष्य कभी किसी के साथ भलाई करे। मनुष्यों के साथ जो बुराइया की जाती हैं उन बुराइयों में आशाओं पर पानी फेरने का दर्जा बहुत ऊंचा है क्योंकि मित्रता तथा वादे का तोड़ना--दोनों बाते-बहुत ही अनाचारयुक्त समझी जाती हैं। मनुष्यों के दिल को इतनी चोट कभी नहीं पहुंचती जितनी उस समय पहुंचती
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न्याय से सम्बन्ध