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न्याय से सम्बन्ध

की इच्छा भी बहुत हद तक शामिल है। यह बदला लेने की इच्छा इस कारण आचारयुक्त ठहराई जा सकती है क्योंकि इस का एक बहुत बड़ी उपयोगिता से सम्बन्ध है। यह बहुत बड़ी उपयोगिता 'हिफ़ाज़त' हैं। हमारे लिये हितकर बातों में सब से अधिक महत्वपूर्ण बात 'हिफ़ाज़त' है। और सारी सांसारिक लाभदायक बातें ऐसी हैं जिनकी एक आदमी को आवश्यकता है किन्तु दूसरे को नहीं है। इन लाभदायक बातों में से बहुत सी ऐसी हैं जिन को आवश्यकता पड़ने पर हम सहर्ष छोड़ सकते हैं या उन के स्थान की अन्य प्रकार से पूर्ति कर सकते हैं। किन्तु बिना 'हिफ़ाज़त' ( Security ) के किसी आदमी का काम नहीं चल सकता। 'हिफ़ाज़त' होने की दशा ही में अन्य मनुष्य हमको हानि नहीं पहुंचा सकता। हिफ़ाज़त होने ही पर इष्ट पदार्थ हमारे काम के हैं नहीं तो क्षणिक उपयोग के अतिरिक्त इष्ट पदार्थों का हमारे लिये कोई मोल नहीं रहता क्योंकि यह अंदेशा बना रहता है कि ज्यूंही कोई हम से मज़बून अादमी हमको मिलेगा तत्काल ही हमें इन पदार्थों से वञ्चित कर देगा। इस कारण उदर-पूर्ति के बाद सब आवश्यकताओं में सब से अधिक अनिवार्य आवश्यकता हिफ़ाज़त की है। और हिफ़ाज़त उस समय तक नहीं हो सकती जब तक कि वह संस्था, जिसके सुपुर्द हिफ़ाज़त का काम हो, सदैव अपने काम पर मुस्तैद न रहे। इस कारण हमारी यह कल्पना---कि अन्य मनुष्यों का कर्तव्य है कि हिफ़ाज़त के काम में, जिस पर हमारा अस्तित्त्व तक निर्भर है, हमारा हाथ बटावें--इतनी दृढ़ हो जाती है जितनी अधिक साधारण उपयोगी कार्यों के विषय में नहीं होती।

इस प्रकार हिफ़ाज़त का दावा अन्य उपयोगी कार्यों से बिल्कुल भिन्न हो जाता है और निरपेक्षता ( Absoluteness)