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पांचवां अध्याय

सञ्चालन कानून के द्वारा नहीं होता है और न होना चाहिये। कोई मनुष्य यह नहीं चाहता कि घरेलू जीवन की छोटी २ बातों में भी क़ानून दस्तन्दाज़ी अर्थात् हस्ताक्षेप करे। किन्तु फिर भी प्रत्येक मनुष्य की धारणा है कि हम अपने सब दैनिक कार्य उचित या अनुचित करते हैं। किन्तु यहां पर भी उस बात को उल्लंघन करने का विचार, जो क़ानून होना चाहिये थी, परिवर्तित रूप में बिद्यमान है। हम सदैव उन कामों के लिये, जिनको हम अनुचित समझते हैं, दएड मिलता देखकर प्रसन्न होंगे, यद्यपि हम इस बात को मस्लहत के विरुद्ध समझते हैं कि सदैव इस प्रकार का दण्ड अदालतों के द्वारा दिया जाय। हम यह बात देख कर प्रसन्न होंगे कि उचित आचरण को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा अनुचित आचरण को दबाया जा रहा है। यह बात दूसरी है कि हम न्यायाधीश को अन्य मनुष्यों की अपेक्षा इतना निस्सीम अधिकार तथा शक्ति देने से डरें। हम यह देख कर ख़ुश होंगे कि शासक--चाहे वह कोई क्यों न हों--मनुष्यों को उचित कार्य करने के लिये विवश कर रहा है। यदि हम समझते हैं कि क़ानून द्वारा किसी उचित कार्य का पालन कराना मस्लहत के विरुद्ध या असम्भव है तो हमको बड़ा खेद सोता है। हम अनुचित व्यवहार के लिये दणड न मिलना बुरा समझते हैं और इस कारण उपरोक्त कमी को पूरा करने के लिये हम अनुचित कार्य करने वाले के प्रति बड़े जोर से अपनी तथा समाज की घृणा प्रकट करते हैं। इस प्रकार न्याय या उचित के भाव के साथ २ क़ानून का बन्धन फिर भी बना ही रहता है। निस्सन्देह क़ानून तथा न्याय या उचित के सम्बन्ध में, जिस अर्थ में