पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/१०

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दूसरे अध्याय में मिल ने 'उपयोगितावाद' का अर्थ समझाया है। अन्य अध्यायों को समझने के लिये इस अध्याय को ध्यान पूर्वक पढ़ना अत्यन्त आवश्यक है। मिल साहब के शब्दों में उपयोगितावाद का अर्थ यह है कि जो काम जितना आनन्द की ओर ले जाता है उतना ही अच्छा है तथा जो आनन्द से जितनी विपरीत दशा में ले जाता है उतना ही बुरा है। आनन्द का मतलब है सुख तथा कष्ट का न होना। किन्तु आनन्द भिन्न २ प्रकार के होते हैं। इस कारण प्रश्न उठता है कि भिन्न २ प्रकार के आनन्दों में एक को ऊंचा तथा दूसरे को नीचा किस प्रकार ठहरावें? परिमाण के विचार को छोड़ कर और किस प्रकार एक आनन्द दूसरे की अपेक्षा अधिक मूल्यवान ठहराया जा सकता है? इस प्रश्न का बहुत ही सन्तोषजनक उत्तर मिल ने इस प्रकार दिया है––यदि ऐसे सब मनुष्य जो दो भिन्न २ आनन्दों का अनुभव कर चुके हों बिना किसी प्रकार के नैतिक दबाव के उन में से एक आनन्द को दूसरे की अपेक्षा अधिक अच्छा आनन्द बतावें तो वही आनन्द अधिक इष्ट है। यदि वे मनुष्य, जो दो आनन्दों से परिचित हैं, एक आनन्द को––यह बात जानते हुवे भी कि उस आनन्द को प्राप्त करने में अधिक अशान्ति का सामना करना पड़ता है ––दूसरे आनन्द की अपेक्षा अच्छा समझें और उस आनन्द को दूसरे आनन्द के किसी भी परिमाण के लिये जिस का कि वे उपयोग कर सकते हैं छोड़ने के लिये तैयार न हों, तो ऐसी दशा में हम उस आनन्द को गुण की दृष्टि से इतना ऊंचा दर्जा देने में ठीक हैं कि जिस से तुलना करते समय परिमाण का विचार उपेक्षणीय रह जाय।

बहुधा मनुष्य प्रश्न करते हैं कि उपयोगितावाद के