फसाऊं? उस समय वहीं “चलो सखीरी ज़म भर लाऊं” वाला गीत बाद आया। कुतर्क कर के मैंने अपने मन को समझाया, क्योकि जो दुर्दशा मे फंसता है, वह अपने छुटकारे के लिये कुतर्क का ही आसरा लेता है मैंने हारानी को फिर समझाया कि “कोई दोष की बात नही है”
हारानी―तुम क्या उन के लाय भेंट करोगी?
मैं―हां।
हारानी―कब?
मैं―रात को जब घर के सारे लोग सो जायंगे।
हारानी―अकेली?
मैं―ही, अकेली।
हारानी―ऐसा काम मेरे बाप के लिये भी न होगा।
मैं―और जी बहू रानी हुक्म दें तब?
हारानी―तुम क्या पागल हो गई हो?―वह भले घराने की बहू बेटी―हो कर क्या ऐसे ऐसे कामों में हाथ देंगी?
मैं―हां, यदि वह मना न करें, सो तू जायगी?
हारानी―“हां, मन जाऊंगी, उन के हुक्म से मैं क्या नहीं कर सकती?
मैं―यदि वह हुक्म दे दें है?
हारानी―तो जाऊंगी, पर तुम्हारे रुपये न लूंगी, तुम अपने रुपये उठा लो।
मैं―अच्छा, तू ठीक समय पर जरूर मिलियो।