मिसराइन―जान पड़ता है कि तुम लोग पांच ठो करती होगी!
मैं―क्या बिना कियेही ऐसा रांधती हूंबि? बिना द्रोपदी बने क्या अच्छी रसोई बन सकती है? इस लिये पांच ठो जुटाओ न, फिर देखना कि तुम्हारे हाथ की रसोई खाकर लोग अज्ञान हो जायंगे।
यह सुन मिसराइन ने एक लंबी सांस ली, फिर कहा―
“भई! एक तो जुटता ही नहीं, तिस पर पांच! मुसलमानों में ऐसा होता है, पर जितना अपराध है वह सब हिन्दुओं की ही लड़कियों का! और होगा भी कैसे? यही तो सन की लच्छी साबाल है! इसी से कहती थी और फिर कहती हूं कि वह औषध और है, जिस से बाल काले हो जाते हैं?
मैं―हां, यह कहो। है क्यों नहीं?
फिर मैं खिज़ाब की शीशी मिसराइन जी को दे आई। उन्होंने रात को खा पी कर सोने के समय अंधेरे ही में उसे बालों में लगा लिया; जिल से कुछ बाल में तो लगा और कुछ में न लगा। और कुछ आंख, कान और मुंह में भी लग गया। सवेरे की बेला जब उन्हों ने दर्शन दिया तो उन का बाल पंचरंगी बिल्ली के रोए की भांति कुछ सादा, कुछ रंगीन और कुछ काला; और चेहरा कुछ कुछ लंगूर बंदर और कुछ मेनी बिल्ली की भांति झलकने लगा। यह देखते ही घर के सभी छोटे बड़े खिलखिला कर हंस पड़े। वह हसी थम्हती ही थी। जब जो मिसराइन को देखता, तभी हंस