कहा―“हरामजादी! जो तेरे मुंह में आवेगा, सोई बोलेगी? क्या पैरों में बेड़ी डालेगी? क्या मैं पगली हूं?”
तब सुभाषिणी ने भौंहें तान कर उस से कहा―
“मैं इन्हें ले आई हूं, तुम हरामज़ादी कहनेवाली कौन? अभी हमारे घर से बाहर निकलो।”
तब तो रसोईदारिन डर के मारे संड़सी दूर फेंक कर रोनी सो हो कर कहने लगी―
“अरे दैया, रे दैया! यह क्या कहती हो? मैं ने हरामज़ादी कब कहा? ऐसी खोटी बात तो मैं कभी ज़बान पर लाती ही नहीं। तुम ने तो आश्चर्य किया!"
यह सुन सुभाषिणी खिलखिला उठी, तब मिसराइन जी ने फूट फूट कर रोना प्रारंभ किया और कहा―
“मैं ने जो हरामज़ादी कहा हो तो मैं गल जाऊंगी”―
(मैंने कहा,―तुम्हारा बलाय गले, अभी गोड़ घिसो)
“मैं नरक में जाऊ―”
(मैं,―“यह क्या, मिसराइन! इतनी जल्दी? किः छिः! और दो हिन्द ठहर जाओ न”)
“मुझे तब नरक में भी ठोर न मिले―”
इस वार मैं ने कहा,―“ऐसी बात न कहो, मिसराइन! यदि नरक के लोगों ने तुम्हारा बनाया व्यंजन न खाया तो फिर नरक कहां रहा?”
तब तो बुड्डी ने कलप कर सुभाषिणी से मुझ पर मालिश की,―“यह जो मन में आवेगा, सोई मुझे कहेगी, और तुम इसे कुछ कहोगी नहीं? तो लो मैं मालकिनी के पास जाती हूं।”