सुभाषिणी ने भौं टेढ़ी कर के कहा―“जैसे हो―जाओ, बुला लाओ।”
हारानी हँसती हुई चली गई। मैं ने सुभाषिणी से पूछा―
“किस को बुला पठाया है? अपने स्वामी को?”
सु०―तब क्या इतना रात को महल्ले के योदी को बुलाऊंगी।
मैंने कहा―तो क्या मुझे उठ कर अलग जाना होगा?
सुभाषिणी ने कहा―नहीं, वहीं बैठी रहो।
सुभाषिणी के स्वामी आये। वे बहुत ही सुन्दर पुरुष हैं। आते ही उन्हों ने पूछा―
“क्यों तलबी हुई है?” इस के बाद मुझे देख कर कहा―यह कौन है?
सुभाषिणी बोली―इसी के लिये तो आप को बुलावा है। हमलोगों को रसोईदारिन अपने घर जायगी, इसी लिये उस की जगह पर रखने के लिये मौसी के यहां से इसे ले आई हूं, किन्तु मा इसे रखना नहीं चाहतीं।
उस के स्वामी ने कहा―क्यों नहीं चाहती?
सु०―युवती है।
सुभाषिणी के स्वामी कुछ हंस कर बोले―“तो हमें क्या करना होगा?
सु०―इस को रखवा देना होगा?”
स्वामी―क्यों?
सुभाषिणी उसके पास जिकर―जिल में मैं न सुनू ऐसे धीरे से बोली―
“मेरा हुक्म।”