पड़ती है। आजकल जो है, वह अपने घर जायगी। (बालक बोल उठा―“त मावाली दाई।”) सो मैं सासू जी से कह कर तुम्हें उस की जगह रखवा दूंगी। परन्तु तुम्हें रसोईदारिन की तरह न रहना पड़ेगा, हम लोग सभी कोई रसोई बनावेंगी, तुम भी कली कभी संग संग रांधना क्यों, राज़ी हो?"
बालक बोला,― “आजी? औ आओ!”
उस की मा बोली,―“तू पाजी!”
बच्चा बोला,―‘अम, बाबू, बाबा पाजी।”
“ऐसी बात नहीं कहना, बेटा!” यों लड़के से कह कर मेरी ओर देख हंसकर सुभाषिणी बोलो,―
“यह नित्य ही बात करता है!”
मैंने कहा―“आप के यहाँ मैं लौंड़ी का काम करने में राज़ी हूं।”
“सुनो! मुझे तुम “आप, आप” कह कर क्यों संबोधन करती हो? जो यह कहना हो तो मेरी सासू जी से कहना। उन्हीं सासू जी का ज़रा भारी बखेड़ा है―क्योंकि वह बड़ी ही लड़ाकी है; सो जैसे हो, उन्हें वश में करलेना पड़ेगा। सो तुम भली भांति कर सकोगी―मैं भी आदमी चीन्हती हूं। क्यों राज़ी हो?"
मैं ने कहा,-“राज़ी न होऊंगी तो करूंगी क्या? मेरा तो और कोई ठौर ठिकाना है नहीं।―” यह कहते कहते मेरी आंखों में आंसू भर आये।
उस ने कहा,― “ठौर ठिकाना क्यों नहीं है? रहो न बहिन!