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इन्दिरा।

इस के अनन्तर बातों के हार को मालकिनी ने अपने हाथ में ले लिया और कहा,―

कलकत्ते के रामरामदत्त के लड़के के साथ इस का विवाह हुआ है। इस के ससुरार वाले बड़े अमीर हैं। यह व्याह होने पर बराबर ससुरार ही रहती है―हम लोग उसे देखने का तरसा करती हैं। मैं कालीघाट पूजा करने आई हूं सो सुन कर यह मुझसे जरा भेंट करने आई है। इस के ससुरार- वाले बड़े आदमी हैं, सो तुम अमीर के घर का काम धन्धा कर सकोगी न?”

हाय! मैं हरमोहन दत्त की लड़की हूं, एक दिन मैंने रुपये के चौतरे पर सोने की इच्छा की थी―वही मैं-आज एक बड़े आदमी के घर का काम काज कर सकूंगी? मेरी आँखों में जल भी भर आया और मुख पर हंसी भी दौड़ आई।

किन्तु इसे और किसी नें तो न देखा, केवल सुभाषिणी ने देख लिया। उस ने भरनी मौखो से कहा―“जरा मैं अकेले मैं इन से कास धन्धे के विषय में बात-चीत कर लू? यदि ये राज़ी होगी सरे इन्हें अपने साथ ले जाऊंगी।” यह कह कर वह मेरा हाथ थम्ह कर खींचती हुई एक कोहरी के भीतर ले गई; वहां पर कोई न था, केवल वही बना अपनी मा के संग दौड़ा चला आया था। एक चौकी वहाँ पर बिछी हुई थी, इस पर सुभ बैठी और मुझे भी उसने हाथ पकड़ खींच कर अपने पास बैठाया; फिर कहा,―“देखो बहिन, अपना नाम मैं ने बिना तुम्हारे पूछे ही बतलाया; अब तुम अपना नाम बताओ!"