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पांचवां परिच्छेद।
अमला।
धान-खेत लहर अली है,
घासतले में पानी।
चलो सखीरी! जलभर लाऊ',
जलभर लाऊं रानी!
निर्मला।
घाट जाट के लता तरून में,
छिले फूल सुखदानी।
चलो सखीरी! जलभर लाऊं,
जलभर लाऊं रानी!
अमला।
महलाती है मधुर मंद हंसि,
माडू़ हंसी-फुहार
लै गगरी हवै परव गुमानी
चलुं क्षुड़े झनकार॥
चलो सखीरी! जलभर लाऊं,
जलभर लाऊं रानी!
निर्मला।
सजि भूषन है, पगवि महाबर,
कर, कर अंच छोर।
ठुमुक चलनि, करधानि ताल पै
करूं छड़ी को सर।