इक्कोसपा परिच्छेद । १२७ छितरा कर यमुनाल तर रहे हों, तनही जाने के कर्णफल भूम, बच्चे, बारी, ले, टमदया बाट मेय को 'द में लि . को भी मेध; WEEK शगुच्छ : मौसर से चला बाँध करने पर रंगो ऑटो को भीतर सेमीही मोसी की रोची दंतपंधि से और कि मेध ताम्बुल के चराने के लिया कि श्री मालि ही असा तिरंगे कहने , दिन ही प्रकार अधों में पंन्न मान, कमदेव मारली हरदा। ले जवाब दे कर छुटकारा पाया: कितनोहडे अ राशि से विभूषित घोल मटोल बासु के दिशाले दुलाले घर बाहिहाई हाई फूली लता मरेपूरे उद्या ति बह घर निकाला शोभा ले शोभित होने : शह। मनरहना, रुपक मना) से औरों के गूजने का सामान मिलने लगा। कितनीही बंदी देने की बाबमाइस, हारों की बहार, चन्द्रहारों की सांदनी, छको ले छधी हे खरणों की मनमान, फैल रही थीं। बिलो हो बनारली, मिर्जापुरी, आलुबरी, द्वाशेवाली, शांतपुर, सिमला और फरास. डांश व रेशमी की नर्ससूतो, जेल, रामेज़, छटेदार, बांधनू कोर की मिझौं-अरकपूर अादि सालियां, फिर कर चूंघट, किसी भी प्राधी घट, लीकी भाई इंघट, किसी की मोही तक मिली जूकशी मात्र को छुए हुए थीं प्रौन को उतना भी भूल गई थी। मेरे प्राणनास बहुतेरी गारी पहन को पता कर के रुपये कमा लाये थे-बहुतेरे कर्नल और अमरल मादि की समसादारी पर
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इक्कीसवां परिच्छेद।