खड़ी सब कुछ देखने सुनने लगी। अन्त में उन्होंने कामिनी से पूछा―“दुम्हारी जीजी कहां है?”
इस पर कामिनी ने एक बहुत ही लंबी सांस लेकर कहा―“क्या जानू, कहां है। कालीदीधी पर जो सर्वनाश हुआ उस के बाद तो फिर कोई खोज ख़बर नहीं मिली।”
यह सुनते ही प्राणनाथ के चेहरे का सारा रंग झांवला पड़ गया। अन्होंने मुंह लटका लिया फिर उन से बोला नहीं गया। जान पड़ता है के उन्होंने मन ही मन यह समझा होगा कि “कुमुदिनी हाथ से निकल गई” क्योंकि उनकी आंखों से आंसूओं की धारा बह निकला।
आंख के आंसू पोछ कर उन्होंने पूछा―
“क्या कुमुदिनी नाम की कोई स्त्री आई थी?”
कामिनी ने कहा―“कुमुदिनी थी, या कौन थी, सो तो मैं नहीं कह सकती; किन्तु एक स्त्री परसो पालकी पर चढ़ी हुई आई थी। उस ने बराबर महाभैरवी के मन्दिर में जाकर देवी को ज्यो ही प्रणाम किया, त्योंही एक अजूबा तमाशा हो गया, अर्थात् एकाएक काली घटा के उमड़ आने से गहरा अंधेरा छा गया और आंधी आनी प्रारम्भ हुआ। वह स्त्री उसी समय त्रिशूल हाथ में लिये हुई दप्प दप्प करती हुई आकाश में उड़ गई।”
यह सुनते ही प्राणनाथ ने जलपान करने से हाथ खींच लिया।.और हाथ मुंह धो माथे पर हाथ धरे देर तक वे सोचसागर में डूबे बैठे रहे। और थोड़ी देर वे पीछे बोले―“जहां से कुमुदिनी अन्तर्धान हुई है, वह स्थान क्या मैं देख सकता हूं?”