जवाब दिया था। भला बतलाओ तो वह कौन सी बात थी?
इस के जवाब देने में मुझे ज़रा देर लगी। क्योंकि उस बित को याद करते करते मेरी आंखों मे आंसू उमड़ने लगे थे, और मैं इन्हें रोक रही थी। उन्हों ने कहा―“बस जान पड़ता है कि इसी जगह तुम पकड़ा गई। क्यों? चलो मेरी जान बची, क्योंकि तुम मायाविनी नहीं हो। इतने ही में मैंने अपने आंसुओं को भीतर ही भीतर पीकर कहा―
“आप ने उस समय इंदिरा से यह बात पूछी थी कि―‘बतलाओ तो सही कि आज तुम्हारे साथ मेरा क्या संबन्ध हुआ?’ इस पर इंदिरा ने यह जवाब दिया था कि―“आज से आप मेरे देखता हुए और मैं आपकी दासी हुई।’बस, यही तो आप का एक प्रश्न हुआ और दूसरा कौन सा है?”
वे―और दूसरा प्रश्न करते डर लगता है। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि मैंने अपनी बुद्धि को खो दिया! तौभी कहो―फूलशय्या के दिन इन्दिरा ने दिल्लगी से मुझे एक गाली दी थी और उस पर मैंने भी उस की सज़ा की थी। सब बताओ तो सही कि वे कौन सी बाते हैं?
मैं―आप ने एक हाथ से इन्दिरा का हाथ पकड़ और दूसरा हाथ उस के गले में डालकर यह पूछा था कि―“प्यारी इंदिरा! बतलाओं तो सही कि मैं तुम्हारा कौन हूं?” इस का इंदिरा में यह जवाब दिया था कि―“मैंने सुना है कि आप मेरी ननद के दूलह हैं?” इस पर आप ने लज़ा के तौर पर इस के गाल में