जिस जमीन में लोग गाय भी नहीं चराते थे वहीं जबसुन्दर
खेतियां होती हैं। जहां जमींदार नित बाकी मालगुज़ारीको
इल्लत में पकड़े बांधे जाते थे वहां अब पक्के बन्दोबस्त को
बदौलत किस्त ब किस्त मालगुज़ारी अदा करके पांव फैलाये
सोते हैं। जिन रास्तों में बकरी का गुज़र न था वहांबग्गियां
दोड़ती हैं। जहां अश्रफियों को बहली मयस्सर न थी वहां
भानों पररेल गाड़ियां हाज़िर हैं। जहांकासिद नहींचलसकता
था वहाँ तारकीडाक लगगई है। जहां काफ़िलों की हिम्मत
नहीं पड़ती थी वहां अब एक एक बुढ़ियासोनाडछालतीचली
जाती है। जहां हज़ारों की तिज़ारत होतीथी वहांकरोडौंको
नोबत पहुंच गयी है। जिन्हें दिन भर मज़दूरी करने पर भी
पाव भर सत्तू या चना मिलना कठिन था उनकी उजतमब
चार पाने रोज़ ओर आठ पाने रोज़ से कम नहीं है। जिन
किसानों की कमर में लंगोटी दिखलायी नहीं देतीथी उनकी
घरवालियां गहने झमकाती फिरती हैं क्यापुल और क्या नहर
पंया मुसाफिरखाने और क्या दारुश्शिफ़ा क्या पुलिसओर क्या
कचहरी क्या इंसाफ़ और क्या कानून क्या इलम और क्या हुनर
क्या जिंदगी काज़रूरी असबाब और क्या ऐश का सामान जो कुछ
इस कम्पनी के राज में देखा गया न पहले किसी के ख़याल
में आया था न पान तक कहींसुना गया। गोया जंगलपहाड़
झाड़ झंखाड़ से इस देश को बांग हमेशाबहार बना दिया।
क्या महिमा. हे अपरम्पार सबै शक्तिमान जगदीश्वर की कि
इंगलिस्तान के जिन सौदागरोंने और दुकानदारोंनेकम्पनीबन
कर अपने बादशाह से हिंदुस्तान में तिजारत करनेको सनद
ली । आज उन्होंने इससारे हिंदुस्तान 'जन्नत निशान"खुलासे
जहान की पूरी सलतनत अपने बादशाह शाहनशाह कैसर-
हिंद एमपरेस विकटोरिया को (ईश्वर दिन दिन बढ़ावे प्रताप
उसका ) नज़र को दूसरी अगस्त १८५८ को पार्लामेंटने यह
हुक्म दिया कि अब आगे को ईस्ट इंडिया कम्पनीके साझी
हिंदुस्तान से कुछ इलाका न रक्खें। जो कुछ उनका रुपया
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दुसरा खण्ड