पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/९४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
इतिहास तिमिरनाशक


फिर सारी अमल हुआ। आदमी दोनों तरफ़ बहुतकाम आये। शायद सन १०३६ की नादिरशाही में भी शहर के अंदर इस से बढ़ कर नहीं मारे गये। बहादुरशाह कुनबे समेत कैद किये गये। औररंगून जाकर कुछदिनांबाद उसोकेदमेंमरे।

जुलाई के शुरू में जेनरल हैवलाक साहिब दो हज़ार आदमी और कुछ तोपें लेकर कान्हपुर और लखनऊ लेने को चले। बारहवों और पंदरहवीं को नान्हा की फौज फ़तहपुर ओर पांडू नदी से भगा कर सत्तरहवीं को कान्हपुर में दाखिल हुए। लेकिन लखनऊ में बेलीगारदवालों को चौबीसवी सितम्बर तक मदद न पहुंचा सके। नवा नवम्बर को नये कमांडर इन चीफ़ सर कालिन कैम्बल तीन हज़ार आदमियों के साथ लखनऊ जाकर 'बेलीगारदवालों को कान्हपुर लाये। बाग़ी और बलवाई सब देखते के देखतेही रहगये। जेनरल ऊटरम को कुछ फ़ौज के साथ लखनऊ के बाहर आलमबाग़ में छोड़ आये थे। कान्हपुर में एक भारी लशकर १८५० ई० इकट्ठा करके मार्च सन १८५० के शुरू में फिर लखनऊ गये। एक हफ्ते की बड़ो कड़ी लड़ाई के बाद सोलहवाँको लखनऊ हाथ आया। महाराज सरजंगबहादुर ने जो अपने गोरखोंको फौज लेकर नयपाल से मदद को आये थे अच्छा काम दिख्लाया। बेगम और बिर्जीसकदर नान्हा समेत तराई की तरफ भागे। और फिर न सुनाई दिये।

निदान दिल्ली और लखनऊ के हाथ आने से बलवा ख़तम हुआ। और जब इधर रुहेलखंड भोलेलिया और इधरझांसी को सर ह्यू रोज़ ने साफ किया सब जगह अमन चैन होगया।

पर विलायत में पार्लामेंटवालों की यह राय ठहरी कि अब हिंदुस्तान को हुकमत कम्पनी से ले ली जाय सच हे पैदा- करनेवाले मालिक को जो कुछ काम इस कम्पनी से लेना था वह पूरा हो चुका । देखो पलासी की लड़ाई से इस सो बरस के अंदर सकार कम्पनी बहादुर ने क्या क्या कामकरदिखलाया और हमारे हिंदुस्तान के मुलक को कहां से कहाँपहुंचाया।