बादशाह बनाया। बलवाई अपने जोश में बावले बन रहे
थे। भला बुरा या वाजिब गैर बाजिब कुछ नहीं देखतेथे।
दिल्ली में गोरों की फ़ौज नथी। यही बड़ी आफ़तों की जड़
हुई बहुतेरे मुसल्मान दिल्ली की बादशाही फिर काइम होना
चाहते थे। वे ईसाइयों की हुकूमत से निकल कर फिर पुराने
लंबे चोड़े खिताब और बड़ी बड़ी जागीरों के मिलने का ऐसे
वक्त में पूरा भरोसा रखते थे बाजे अा के पूरे हिन्दू भी
उनमे शामिल होगये॥ निदान देखते ही देखते यह बदले
की आग ऐसी फैली। कि एक दफा थी गोमा दुआब अवध
और बुंदेलखंड सिमाध मेरटकी छावनी लखनऊ की रज़ीडंटी
और अध्यारे और इलाहाबाद के किले के बिलकुल अंगरेज़ी
अमल्दारी ही उठ गयो। कान्हपुरमें सिपाहियों ने पांचवींजून
को बलवा किया। और नान्हाराव को अपना सर्दार बनाया।
नान्हा को सर्कार से अपना एबज़ लेने का यह अच्छा मौका
मिला। जेनरल हीलर बारकों में मोरचे लगाकर सातसो अंगरेज़ी
के साथ कि जिसमें ज़ियादा मेमबच्चे भोर न लड़नेवाले साहिब
लोग थे बंद हुआ। बाईस दिन तक बड़ी बहादुरी के साथ
लड़कर जबखाने और लड़नेका सामान न रहा जानकी अमान
का कोल करारलेकर सबने अपने तई नान्हाकेहवाले करदिया।
उस कमबख़त ने सबको कदवा डाला मेम और बच्चों का भी
कुछ ख़याल न किया॥ नव्वाब तफज्जुल हुसेनखांको बग़ावत
के सबब जी साहिब लोग फतहगढ़ (फर्रुखाबाद) से निकल
आये थे उनकी भी सने जानली। जो मेम और बच्चे बचरहे
थे जुलाई में सर्कारी फ़ौज पास पहुंचने पर उन सब बेचारों
की गर्दन मारी॥ सिर्फ दो साहिब इसके हाथसे बच निकले।
गाया इस मुसीबत की कहानी सुनाने को जीते रहे।
अवध की फौज जून के शुरूहीमें बिगड़गयी। और बाद
शाह बेगम उस के लड़के बिर्जीसकदर के नाम से फिर
पुरानी नब्बाबी चमकी। तअल्लुकेदारोंका ज़ोर जुलम अंगरेज़ी
अमल्द्वारी में दुबारहा। अब निर्जीसकदर के झंडे वले फिर