बांकी सब में सिपाहियों ने आफ़त मचायी जब सिपाही बिगड़े
तो फिर बदमाशों का उमड़ना क्या ताज्जुब हैं। हाकिम
का डर न रहने से लूट मार में कोन सा तरद्दुद है। जब
ऊंची जात वाले सिपाहियों ने मेरट में अपने अफसरों पर गोली
चलाकर जेलखाना खोल दिया। तो गूजरों का क्या कसूर है
जिसकी लाठी उसकी भैंस सब ने इसीपर अमल किया। ओर
अगर पूछों कि शरीफों ने रईसों ने बड़े आदमियों ने बलवा
दबाने में सर्कार की मदद क्यों नहीं दी। तो हम यही कहेंगे
कि इनमें ऐसी हिम्मत और बहादुरी किसने पायो? भला यह
बनिये महाजन लाला बाबू हथियार चलाने लाइक हैं? अनज
बेवपार रुपये पैसे का काम जो चाहो इन से ले लो। राजा
महाराजा अपने इलाकों की आमदनी ऐश आराम में खर्च
करते हैं हिफ़ाज़त का भरोसा सर्कार पर रखते हैं जुलूस के
लिये कुछ सवार पियादे रख लिये तो क्या वह सर्कार के
क्रवाइल सीखे सिपाहियों से लड़ सकते है ज़राग़ोर करो। ये
लोग अपनी ही जान बचाने की फिकर में पड़ गये थे। हां
सर्कार की फिर सलतनत जमने को दुआ दिल से मांगते थे।
सिवाय इसके लायलटी यानी सर्कार को खैरखाही के मानी
में फरंगिस्तान और हिंदुस्तान के दर्मियान बड़ा फ़र्क है जिसके
नाम की डोड़ी पिटे उसका हुक्म मानना यही यहां की खेरखाही
है। सैकड़ों बरस से जो बादशाहियों का उलट पुलट देखा
किये हे अब उसको परवाही नहीं है । पठान मुग़ल मरहठों
के जुलम ज़ियादती में इन को ऐशा बिगाड़ दिया। कि
वेट्रिाटिजम के लिये हम को यहाँ की बोलीमें कोई लफ़ज़ ही
नहीं मिला। इन के ख़याल ही में वह आज़ादी नहीं आ
सती जिसके लिये अंगरेजों ने स्टुआर्ट के स्थानदान को तखत
से उतारा। न वह इटालीवालों को खुद मुखतार होने की
खुशी या जर्मनीवालों को कोमो हमदर्दी इनके ख़यालमें आस-
कती है जिस से यह मुलक एक होकर ऐसी बड़ो इमगाएर,
यामी शाहनशाही बन गया।
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दुसरा खण्ड