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इतिहास तिमिरनाशक


मार कर निकाल दिया। और कश्मीर छोड़नेसैइनकारकिया। लेकिन लाहौर के अजंट हेनरी लारंस साहिब जब कुछ थोड़ी सी अंगरेज़ी फ़ौज लेकर गुलाबसिंह को दखल दिलाने के लिये पीरपंचाल के घाटे के पास जा पहुंचे इमामुद्दीन उन के साथ लाहौर चला आया। और कश्मीर में बखूबी गुलाब- सिंह का कब्ज़ा और दखल हो गया। इमामुद्दीन ने गुलाब- सिंह को कश्मीर न देनेका सबब यह बयानकिया। कि राजा लालसिंह वज़ीर ने कशमीर छोड़ने के लिये मना लिख भेजा था बल्कि लालसिंह का मुहरी ख़त भी इस मज्मूंन का पेश कर दिया। लालसिह इस कुसर में विज़ारत से मौकूफहोकर नज़रबंद रहने के लिये पहले देहरे और फिर आगरेदोहज़ार पिंशन पर भेजा गया। और कारबार रियासत का सर्दारतेज- सिंह सर्दार शेरसिंह सर्दार शमशेरसिंह संदार निधामसिंह सदार अतरसिंह सदीर रंजीरसिंह दीवान दीनानाथ और ख़लीफ़ा नरुद्दीन के सपुर्द हुआ। इस अ़र्से में मीआद सर्कारी फ़ौज को लाहौर में रहने की पूरी हो गयी थी। और नज़- दीक था कि लाहोर छोड़कर सतलज इस पार चली आवे लेकिन सर्दारों ने यह बात न होने दी‌। और फ़ौज रहने के लिये सर्कार से बहुत भिन्नत की। तब नाचाख सर्कार ने उनकी अ़र्ज क़बूल करके यह तजवीज़ ठहरायी। कि जब तक दलीपसिंह १६ बरस का न हो जितमाफ़ौज सर्कारमुल्क को हिफाज़तके लिये काफी समझे लाहौर में रक्खे। और उस का ख़र्च बाईस लाख रुपया साल लाहौर के ख़ज़ाने से मिला करे। और मुल्क का बंदोबस्त और इन्तिज़ाम साहिबअजंट बहादुर की सलाह और हुक्म मुताबिक होता रहे। ओररानी चंदा के गुज़ारे को डेढ़ लाख रुपया साल नक़द ठहरजावे। रानी चंदा इख्तियार घट जाने के बाइस रोज़ बरोज़ हर तरह के फ़साद उठाने लगी। और दलीपसिंह कोभीबहकाने और फ़ुसलाने लगी। यहां तक कि जिस रोज़ सर्दारतेजसिंह की राजगी का ख़िताब देना ठहरा था दलीपसिंह ने साफ़