पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/७५

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दुसरा खण्ड


हुआ। जबकि गव़र्नर जे़नरल को ख़बर पहुंची कि सिक्खोंकी फ़ौज फ़ीरोजपुर के सामने आन पड़ी तो इधरसे भी दौड़ादौड़ पल्टन और रिसालों का कूच होना शुरू हुआ। और कन्हाकी सरा * के डेरों से गवर्नर जेनरल ने लड़ाई का इश्तिहार जारी कर दिया। सिक्खोंकी फ़ौज़ जो इसपार उत्तरीथीअस्सी हज़ार से कम न थी; तेज़सिंह और लालसिंह दोनोंनेचाहा कि फ़ीरोज़पुर पर हमला करें लेक़िन फौज ने कबूल न किया उन के दिल में यह बात समा रही थी कि फ़ीरोज़पुर के किले में अंगरेज़ो ने सुरंगें खोद कर बारत बिछा रक्सी हे जिस वक्त सिक्ख लोग हमला करेंगे। बारूद में आगलगा देबेंगे। ग़रज़ कई रोज़ तक इसी तरह चुपचाप फ़ीरोज़पुर के सामने डेरा डाले पड़े रहे। पर जब सनाकि अंगरेज़ीफ़ौज का उन की तरफ कूच हुआ तो वे भी वहां से अम्बाले की तरफ रवाना हुए। अठारहवीं दिसम्बर को तीसरे पहर जब कि राजा लालसिंह बारह हज़ार सवार और चालीस तोपोंके साथ बढ़कर मुदकी से दो कोस के फ़ासिले पर आन पहुंचा अंगरेज़ी फ़ौज बड़ालंबा कूच ते करके मुदकीमें पहुंची थी अभी डेरे भी खड़े नहीं हुए थे सिपाही लोग हाथ मुंह घोने और रोटी पकाने की फिकर में थे। गवर्नर जनरल और कमांडरह्नचीफ़ दोनों यह ख़बर सुनतेही अपने अपने घोड़ों पर हो गये। और लश्कर में बिगुल लड़ाई का बजवादिया। जिस दम अंगरेज़ी फ़ौज झपट कर सिक्खों से मुकाबिल हुई गद उड़ने के सबब अपना और बिगाना कोई भी नहीं सूझता या सिक्ख लोग जो पहले ही से झाड़ियों के ओट में छुप रहे थे। फुरसत के साथ अंगरेजी सवारों को अपनी बंदूक का निशाना बनाते थे। जेनरलसेल जलालाबादवाले और और कई बड़े अंगरेज़ इस लड़ाई में मारेगये। पर आखिर अंगरेजों के सामने सिक्ख लोग कहां तक ठहर सकते थे गोदड़ों की तरह शेर के सामने से भागनेलगे। ओर खेतसाहिबानाली-


अम्बाले के पास है।

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