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इतिहास तिमिरनाशक


रोका और फ़ीलवान को धमका कर ज़बर्दस्ती बैठवा दिया। महाराज को उस की गोद से छीन लिया। और उस का काम गीली और संगीनों से उसी जगह तमाम किया। इस बज़ीर के मरने पर पंजाब के दर्मियान पूरी बदअ़मली फैलगई और फिर वहां कोई और वज़ीर मुक़र्रर न हुआ। रानी चंद्रा का सलाहकार राजा लालसिंह रहा। बिल्कुल काम काज उसी के कहने मुताबिक होने लगा। पर इख़्तियार सब बात में फ़ौज का था। और फ़ौज को इस क़दर सामान लड़ाई का मौजूद होते हुए बे शग़ल खाली बैठे रहना पसंद न था। बैठे बिठाये जैसे किसी का सिर खुजलाता है ख़ाहमखाह सर्कार अंगरेज़ बहादुर से लड़ना विचारा। बहुत लोग यह भी कहते हैं कि मंसूबा इस लड़ाई का रानी और सर्दारों ने उठाया था। और फ़ाइदाउस में यह सोचा था। कि इस तरह तो फ़ौज लाहौर में कभी चुपचाप नहीं बैठी रहेगी। जैसे इतने राजा और सारी को मार डाला अब जो बाकी रह गये हैं उनके खून से दिल बहलावेगी। इस से बिहतर यही है कि ये लोग अंगरेजी से लड़ें अगर सिक्खों की फतह हुई तो बेशक यह कलकत्ते तक अंगरेज़ों का पीछा करते हुए चले जावेंगे जल्द लाहौर को न फरेंगे। और जो इनकी शिकस्तहुई और अंगरेज़ोंके हाथसे मारे गये तो साहिबान आलीशान किसीको जामके खा़हांनहीं सब के पिंशन मुकर्रर हो जावेंगे। ग्वालियर की नज़ीर बहुतदिल पिज़रे थी बचे हुओं ने अपनी जान का बचाव इसो में देखा कि फ़ौज लाहौरसे निकल जावे। ओर अंगरेज़ों से लड़ पड़े। निदान फ़ौज को अंगरेज़ों पर चढ़ाई करने का हुक्म जारीहो गया लार्ड हार्डिंग इस भरोसेपर कि दोनों सोरोंके दर्मियान सुलह और दोस्ती का अहदनामा बकरार और काइम था बिलकुल ग़ाफ़िल रहा। यहां तक कि राजा लालसिंह ने अपने बाईसहमार घुड़चढ़े और चालीसतोपों के साथ तेईसवी नवम्बर को लाहौर से किया। और सरदार तेजसिंह भी सोलहवीं दिसम्बर को फौज़ समेत वहां से चल कर उस से आ शामिल