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इतिहास तिमिरनाशक


में उस का काम तमाम किया अजीतसिंह तो उसी दम ३०० सफर और २५० पैदल लेकर लाहौर की तरफ़ दोड़ा। और लहनासिंह बाक़ी से सौ सवारों के साथ धीरे धीरे उस के पीछे रवाना हुआ। आधे रास्ते पर ध्यानसिंह भी जो शेर सिंह के पास जाता था अजीतसिंह को मिलगया। अजीत सिंह ने उसे रोका। ओर कहा कि काम बिल्कुल ख़ातिर खाह अंजाम हुआ अब आप किले में चलकर बंदोबस्त फर्मा- इये। और अपने वादों को पूरा किजिये। जब ये लोग क़िले के अंदर पहुंचे अजीतसिंह का इशारा पाकर एक सिपाही ने राजा ध्यानसिंह को गोली मार दी अजीतसिंह ने शहर में मुनादी करायी कि दलीपसिंह महाराज है और लहनासिंह सिंधांवाला उस का वज़ोरे हुमा। ध्यानसिंह का बेटा राना हीरासिंह सिंघांवालों के काबमें न आया। फ़ौज को अपनी तरफ़ कर लिया सो ज़ब तो लेकर किला जा घेरा। तमाम रात तोपें चलती रही सूरज निकलते ही हीरासिंह ने कसम खायी कि जब तक मैं अपने बाप के मारनेवालों को मराहुभां नही देखेंगा खाना पीनाहरामहे रानीभी ध्यानसिंहको लोडि- यों समेत सतो होने के लिये इस अर्से में चिता पर चढ़नेकों मयारथो हीरासिंह ने सिपाहियोंसे पुकारकर कहाकिरानी तब पती होवेगी जब उसके मालिकके मारनेवालोंका सिरकाटकर उस के पैरों में रक्खा जावेगा। फोज इस बात को सुनते ही जोश में आयो। दीवार टूट गयो थो शिलेपर हल्लाकरदिया “और बात की बात में अन्दर जा दाखिल हुए अजीतसिंहका सिर काटकर ध्यानसिंह की रानी के पैरों में रक्खा वह उसे देखकर निहायत खुश हुई और फिर ध्यानसिंह को कलमी हीरासिंह की पगड़ी में लगा कर आप तरह औरतो समेत सती हो गई। लहनासिंह सिंधांवाला मारा गया फोन लेन कोचली गयो। दलीपसिंह महाराज और हीरासिंह वज़ीर के १८४३ ई० नाम से डॉडी फिरी। थोड़े ही दिनों बाद राजा हीरासिंह और उस के मोतमद पंडित जल्लाकी बाज़ी बातें ऐसी जाहिर