पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/६९

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दुसरा खण्ड


जब उसे जलाकर नौनिहालसिंह घरकोतरफ़ फिरा। रास्तेमेंएक दार्वज़ा टूटकर ऐसा उस पर गिरा कि वहभी अपने आपकेपास सिधारा। उस के साथ राजा ध्यानसिंहका भतीजामीयांउत्तम सिंह भी वहां काम आया। कहते हैं कि यह सारा करतूत ध्यानसिंह और उस के भाई गुलाबसिंह काथा। लेकिनदर्वाज़ा गिरने का असली सबब आज तक किसीकोनहीं मालूमहुआ। सिक्खों ने अपने दस्तूर बमुजिब खड़गसिंह को रानी चन्द- कुंवरि को मुल्क का मालिक बनाया। ओर गुलाबसिंहभोउसी को जानिब रहा। लेकिन ध्यानसिंह ने फ़ौज को खड़गसिंहके भाई शेरसिंह से मिला दिया। चन्दकुंवरि क़िले में बंद हुई फ़ौज ने चारों तरफ से घेर लिया। पांच दिन तक दोनौतरफ से खूब गोला चला। गुलाबसिंह भीतर ध्यानसिंह बाहरथा। जीमें दोनों एक लोगों के दिखलाने को यह सर्वांग रचा था। आखिर इस बात पर सुलह ठहरी कि शेरसिंह गद्दीपरबेठे। चन्दकुंवरि को नो लाखको जागीर दे। उसे कभी अपनी रानी बनाने का इरादा न करे। और गुलाबसिंह अपनी फ़ौजसमेत निशान उड्मता किले से बाहर चला जावे कोई कुछ रोकटोक नं करे। कहते हैं कि गुलाबसिंह ने अपनी सोलहतोपोंको सोलह पेटियां एक एक तोप के लिये तीस तीस कारतूस रख कर बाकी बिल्कुल रुपयों से भरी ओर पांच सौ तोड़े अशरफियों के अपने पांच सो जवानों के हाथ में थमा दिये जवाहिरजिस कदर हाथ लगा अपनी अर्दली के घुड़चढ़ी को सपुर्द किया। और भी बहुत सा कीमती असबाब लिया। किलेसे निकलकर शाहदरे के नजदीक डेरा किया। फिर कुछ दिनों बाद शेर- सिंह से रुखसत लेकर अपनी जागीर जम्ब की तरफ चला गया। ध्यानसिंह ने यह समझा कि शेरसिंह को में ने ही गट्टी पर बिठाया और शेरसिंह ने यक़ीन जाना कि जब तक ध्यानसिंह रहेगा में नाम ही का महाराज यह बिलकुल इख्तियार अपनेहाथमें रक्खेगा। मुझेहरतरह से धमकाये और दबावेगा। दिलों में फ़र्क़ आया। एककोदूसरे