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इतिहास तिमिरनाशक


तक बिल्कुल अपने क़ब्जे़ में कर लिया। इसमेंसे कुछ ऊपर करोड़ रुपयेका लोगोंको जागीर और मुआ़फ़ीमें दे रक्खा था। और बाक़ी की आमदनीका तख़्मोन्न डेढ़ करोड़ रुपया उससे ख़ज़ानेमें आताथा। मरतेवक्त उसने दानपुण्य भी ख़ूबकिया। करोड़ रुपये से ज़ियादा तो जिस रोज़ वह मरनेको था उसी रोज़ ख़ैरातहुआ। और तमाशा यह कि लिखना पढ़ना वह़कुछ नहीं जानता था। सिर्फ़ नाम भर लिख सकता था। और आँखभी एकही रखता था एक सीतलामें जाती रही। लेकिन आदमी की पहचान भगवान ने इसेऐसीदी। कि विक्रमभोज और अकबर के बाद शायद इसी के दौर में नव रन गिने जा सकते थे। जब उसको लाश को गंगाजल से नहला कर चन्दन के बिमान पर जो सोनेके फूलोंसे सनाहुआथा जलाने को ले चले। चार रानियां अच्छीसेअच्छी पोशाके और ज़ेवरपहने हुए उसके साथ गयी। रानी कुन्दन रजपूत राजा संसारचंद कांगड़ेवाले की बेटी महाराज का सिर गोदमें लेकर चितापर बेठगयी बाकी तीनों जिनमेंदो सोलह सोलह बरसको निहायत खूबसूरत थी पांच सात लौड़ियों के साथ उसके चोमिद जा बैठी। इन सबके चिहरोंपर रंज का निशान कुछ भी न था बल्कि खुशीका असर मालम होताथा। अजब एक समा देख- नेवालोंके दिलको कलक दिलानेका था। निदान चितामें आग लगायी गयी। और देखतेही देखते वह राखकोढेरी होगयी। कहते हैं कि जब चिता जलती थी एक टुकड़ा बादल का नमूदार हुओं कुछ बर्दै पानी को बरस गया। गोया खुद आसमान महाराजके मरनेसे रोया। रंजीतसिंहके बाद उसका बेटा खड़गसिंह उसकी गद्दोपरवठा। खड़गसिंह अपने बापक पुराने वजीर राजा ध्यानसिंहसे किसी सबब नाराज़ होगया। ध्यानसिंह ने उसके बेटे नौनिहालसिंह को ऐसा उभारा कि उसने खड्गसिंह को नज़र बन्द करलिया और राज काज सम श्राप करने लगा। खड़गसिंह थोड़ेहीदिनों में बीमार होकर मा गया। कोन जाने ज़हरदिया या इलाजही बुरा किया जो हो