भेजा कि मेंम साहिब और बाबा लोगोंकी तकलीफ़ में नहीं
देख सकता हूं अगर इनको मेरे हवाले करदी में बहुताराम
और हिफ़ाज़तसे पहुंचवा दूंगा। फ़ौजके अफ़सर तो उसकेबस
में हो गये अपनी मेम और बच्चों को भी उस के हवाले कर
दिया। दसवीं को तंगतारीक घाटे में जो शायद दस फुट भी
चौड़ानहीं है। नामही उसका तंगओरतारीकहै। इतनादमी
मारेगये। कि अब कुलदोसो सत्तर सवारसिपाही और गोलंदाज
और चार हज़ार बहीर के आदमी बाकी रह गये। सो यह
बारहबीं ओर तेरहवीं को जगदलक और गंदमक के घाटे में
तमाम हुए। क़िस्सा कोताह साढ़े सोलह हज़ार आदमियों में
जो काबुल से चले थे सिर्फ एक डाकतर ब्रैडन साहिब जीते
जागते जलालाबाद पहुंचे गया इस तबाहीकी ख़बर पहुंचाने
के लिये बच रहे। जलालाबाद में औरही किस्म का अफ़सर
था। वहअसली सिपाही सरराबर्टसेल बहादुरथा। रुपया रसंद
गोला बास्त सिपाह जो कुछ लड़ाई का सामान हे सब कम
था। मगर दिल का वह बहुत दिलेरथा। काबुलवाले अफ़्सरों
का हुक्म जो क़िला ख़ाली कर देने का पहुंचा था कुछ भी
खयाल में न लाया। और अकबरखाँ से मुकाबला करने का
मंसूबाठाना। भूचालसे किले की दीवार भी गिरगयी। तो उसने
देखतेही देखते फिर बनाली। रसदघटगयो। तो घोड़ोंकेगोश्त
से लोगों को भूख बुझायी। पर किला न छोड़ा। अकबरखाँनेछ
हज़ार फ़ौज लेकर इस किले पर हलाकिया पर सरराबर्टसेल
बराबर उसका दांत खट्टा करता रहा। उधर कंदहार को
जेनरल नाट दबायेरहा। बहुतेरे बलवाई उसके गिर्दजमाहुय
वह सबको फटकारता रहा। ग़ज़नीमें कर्नल पामरथा। अगर
वह शहर में किसीको रहने न देता कुछ न होता। लेकिन
वह शहरवालों पर रहमकरगया। बर्फ के मोसिममें उन्हें
बाहर निकालना इन्साफ़ न समझा। और यह उसके हकमें
जहर हुआ। शहर वालोंने शहरपनाह तोड़कर बलवाइयों की
भीतर घुसा लिया कर्नल पामर क़िले में बंद हुआ। जिले में
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इतिहास तिमिरनाशक