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इतिहास तिमिरनाशक


की राह हिंदुस्तान जानेका हुक्म दिया उस ने न कुछ तूफ़ान का ख़याल किया न तूफ़ानी अंतरीम का। चलतेचलते ग्यारह महीने के लगभग अर्से में अफ़्रीका घूमकर मलीबार के किनारे कल्लीकोट में लंगर आ डाला। उस वक्त वहां के राजा का नाम पुर्तगाल वालों ने शामीरिम लिखा है वह तो इन की ख़ातिर्दारी करना चाहता था लेकिन अरब वालों ने डाह खा के उस का दिल इन से फेर दिया। वास्नोडिगामा ने जबयह मालूम किया तुर्त लंगर उठा के पाल अपने मुलक की तरफ उड़ाया। दूसरे साल पुर्तगाल के बादशाहने १३ जहाज़रवाना किये। और उन पर आठ पादरी और १२०० सिपाही भी भेजे। अल्वारिज़ काबरल उनका अपसर था। छ जहाज़ इन में से कालीकोट पहुंचे राजा इन की भीड़ भाड़ देख कर दवदबे में आ गया। जिन हिंदुओं को वास्कोडिगामा जाते वक्त यहां गया था और अब अलवारिज काबरल वाससलाया था इन्हों ने पुर्तगाल का बहुत बढ़ावे को साथ बयान किया निदान राजा ने पुर्तगाल बालोंका कलल्कोट में कोठी खोलने की परवानगी दी। और फिर धीरे धीरे इन्हों ने ओर भीजगह कोठी खोलनी शुरू की। सन् १५१० में बिजयपुर वालों से गोवा छीन लिया। और तब वही बराबर उनका यहांदरस-हुकूमत बना रहा।

पुर्तगाल वालोंको देखादेखी डच और फ्रांसीसी वाले भी अपने जहाज़ इधर लाने लगे फिर यह कबहोसकताथा कि १५९९ ई० अंगरेज़ चुपचाप बैठे रहते‌। सन् १५९९ में इंगलिस्तान के कुछ आदमियों ने साझा करके तीस लाख रुपये पूंजी के तौर पर इकट्ठाकिये। और उस वक़्तको मलिका कोन अलीज़ेवयसेइस मज़मून की एक सनद लेली कि पंदरह बरस तक बे ठनकोपर- वानगी कीई दूसरा आदमी उनके मुल्क का पूरबमें तिजारतन करने पावे। साझियोंको अंगरेज़ो में कम्पनीकहते हैं इसीलियेइन साभियोका नाम ईष्टइंडिया कम्पनी पड़यया। इनका जलसा


मशरिकी हिंदुस्तान के साथी।