अंगरजी अमलदारी में चला आया। और महमूद को इस लिये
कि इस ने अपने वज़ीर फतहख़ां बारकाज़ई को जिसकी मदद
ने लखत पाया अंधा करके मार डाला था फतहखां के बेटे दोस्त-
मुहम्मदखां ने तख्त से उतारकर काबुल पर अपना कबज़ा
कर लिया। कंदहार दोस्तमुहम्मद के भाइयों के दखल में
रहा। महमूद हिरात को चला गया और उस के बाद उस
का बेटा कामरां यहां का बादशाह हुआ कोटसिमोनिच ने
जो ईरान में झूस का एल्चो था। यह मौका अपने मालिक का
इस तरफ़ इतियार बढ़ाने का बहुत ग़नीमत समझा ॥ ईरान
के वादशाह को उभारा कि अफ़ग़ानिस्तान पर दात्रा करे श्रीय
उस का लश्कर हिरात के मुहासरे को भिजवाया। बल्कि
कोन खर्च के लिये कुछ रुपया भी अपने यहां से दिलाया।
अर्चि ईरान का लश्कर हिरात से हारकर लौट गया और
कब गलिस्तान ने रूस से जवाब तलब किया। रूस के
शाहंशाह ने असली बात छुपाकर कोटसिमोनिच के बिल
कुल कानों से इनकार कर दिया। लेकिन सार कम्पनी को
बखूबो साबित हो गया कि रूस का हिन्दुस्तान पर दांत हे
भाब काबू पावेगा। इधर पैर फैलावेगा। और अलक्जेंडर बर्निय
साहिब ने भी जो सन् १८३० में एल्ची होकर काबुल गये थे यहीं
बयान किया कि दोस्तमुहम्मद बिलकुल रूसवालों की सलाह में
हे और रूसवालों ने उस से पक्का वादा किया है कि हम पिशावर' रंजीत संह से वापस ले देंगे। सकार ने ज़रा भी इस बात पर गौर न किया कि भला रूसबाले इधर क्यों कर सकेंगे। अगर कहेकि क्या वह ईरान तूरान तातार और अफगानिस्तानवालों को बहकाकर और लालच दिखलाकर उन्हें हिन्दुस्तान पर नहीं चढ़ा
सकते हैं तो ठुक सोचना चाहिये कि अब वह महमूद ग़ज-
नवी और चंगेज़खां का ज़माना नहीं है कि जब नंगे पांव और
भो सिर गक्कर *लोग महमद के रिसाला को काटते थे। और
- आनन्द्रपाल की लड़ाई में गक्करों ने महमूद ग़ज़नवी का
लशकर लूटा था