छठा दें रज़ीडंट ने खुशी से यह बात कबूल को और बलवन्तसिंह को गद्दी पर बैठा दिया। सन् १८८५ में बलदेवसिंह का परलोकहुआ। दुर्जनसालने बलवन्तसिंह के मामू को मार डाला ओर बलवन्तसिंह को क़ेदकरके राजगद्दी पर आप बैठा। सर डेविड अक्टरलोनी ने लड़ाई को तयारी की। लेकिन सर्कार ने उसकी यह तजवीज़ पसंद और मंज़ूरन की। सर डेविड अकृरलोनी ने उसी दम इस्तीफ़ा भेजा। और मेरठ के मुक़ाम में मरगया। भरतपुरवालों का गुमान है कि उसने ज़हर खाया। उसके उ़हदेषरसरचार्लस् मेटकाफ़ मुकर्रर हुआ। इस अर्से में दुर्जनसाल का भाई माधोसिंह उस से बिगड़ गया। और डोंग में जाकर सिपाही भरतीकरने लगा सकार ने देखा कि पिंडारों की तरह यह लोग फिर लूट मार का बाजार गर्म करेंगे और होसे होते मारी अमल्दारी में फ़साद उठावेंगे दुर्जनसालकोबहुत समझाया। जब उसने कुछ न माना लाईकम्बरमिश्रर कमांडरइन्चोफको बीस हज़ार फोज देकर दुर्जनसोल के निकालने के लिये भेजा। दसों दिसम्बर को सर्कारीलश्कर भरतपुरके साम्हने पहुंचा। और अठारहवों जनवरी को सुरंगें उड़ा कर किला तोड़ा। दुर्जनसाल[१] पकड़ा गया बलवन्तसिंह को सर्कार ने नये सिर से गद्दी पर बिठाया।
इन्हीं दिनों में यानी सन् १८०४ में सर्कारीनेडव लोगों की सुमिचा के टाप में बनकुलन देकरउनसे मलाका और सिंहपुर का टापू ले लिया। और यही स्ट्रेट सेटलमेन्ट कहलाया।
लार्ड बेंटिंक
१८२८ ई० लार्ड एहस्ट के जाने पर वही लार्ड बैंटिंक जोसाबिक में मंदराज का गवर्नर था । वसीले के ज़ोर से गवर्नर जेनरल मुकर्ररहो आया। इसके वक्त में लड़ाई भिड़ाई कोई नहीं हुई। बड़ी भारी बात यह हुई कि सती होने का बड़ी बुरी रस्म यक कलम मौकर्फ की गयो।
- ↑ बनारस भेजा गया और उसी जगह मरा।