गद्दी पर रघुजी भौंसलाके पोते को बिठाया। लेकिनआपारास्ते
से भागकर नागपुर से ८० कोसपर नर्मदा के दखन एक पहाड़ी
गोंद सर्कार की पनाह में चला गया। और वहां फ़ौजजमाकरके
१८१६ई० बखेड़ा उठाने लगा। निदान सन १८१६ में जब सर्कार ने
उसके इलाज को तदबीर को वह उन जंगलपहाडोंकोछोड़कर
सेंधिया के क़िले असीरगढ़ में जा घुस्थ और फिर फ़कीरी भेस
में पंजाब की तरफ चला गया। सर्कारने जोधपुर के बजाकी
फे़ल ज़ामिनी पर इसे वहां रहनेकी इजाज़तदी ओरएनमुद्रत
बाद उसी जगह इसका मरना हुआ। सन ने इस क़सूर
पर कि असीरगढ़ के किल्लेदार ने आपा साहिब को पनाह दी
थी और क़िलेदार को सेंधिया की पोशीदा पवानगीथी संधिया
को सजा देने के लिये उस मशहूर मन बूत किले को घेरकर
अपने दखल में कर लिया। अब रह गयाहुल्कर सो जस्वना-
राव घा तो परलोक होगया था उसकी रानी तुलसीबाईने एक
लड़का गोद लेकर गद्दी पर बिठाया। तुलसी बाई ने अपनी
सोन के डर से अपने यार गनपतराव समेत सारी पनाह में
चला आना चाहा। लेकिन फोज में इस में अपनीतबाहीसम-
पहर तुर्त उसका सिर काट डाला और लड़के राजा क
ग्राम से सकार साथ लड़ने का सामान किया। मंदराजका
कमांडरइनचीफ जो पास हो मोजूद था बिजली की तरह
फोन लेकर इनके सिर पर पहुंचा। और सिमा पार मही-
दपुर में इन्हें ऐसा काटा मारा और भगाया कि तब से
वह रान बिलकुल सुस्त पड़ गया। सन् १८५० में सुलहनामा
लिख गया। क्या महिमा हे सर्व शक्तिमान जगदीश्वर की कि
सकार ने तो खाली लुटेरों ओर डाकू यानी पिंडारों का
इस फोन से नाश करना चाहा था लेकिन वहां उनके
हिमायतो बल्कि बानी मबानी यानी मूलकारण मरहठों ही
का नाश होगया। गोया बिल्कुल हिन्दुस्तान बेखलिश हुआ
और आप से आप सकार के सायेमें चलाया। सिवायसितारे
के तमाम इलाके पेशवा के और अक्सर इलाके नागपुर के
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इतिहास तिमिरनाशक