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इतिहास तिमिरनाशक


समझे हुए थे कि अगर दस आदमी भी क़िले में खाली पत्थर लुढ़काने को हों हमला करके दुश्मन कभी उस तक न पहुंच सकेगा चाहेवहलाखों फ़ौजक्यों नलावे। और अबतो (सन्१७७६) संधिया के एक हज़ार सिपाही चुने हुए लड़ाई के सब,सामान समेत उसके अंदर मौजूदथे पोफ़म हेरान था किस ढब उस पहाड़ पर चढ़े। इत्तिफ़ाक़से एकचीर उसे ऐसा मिलगयाकि जो क़िले में चोरी करनेके लिये एक छुपीहुई पगडंडी से उसंपहाड़ पर चढ़ जाया करता था। पोफ़म ने यह रास्ता. उससे मालूम कर लिया। दूसरे दिन सूरज निकलने से पहले आगे आप हुआ और पीछे फ़ौज सीढ़ियां लगाकर रस्से लटकाकर खूंटियां गाड़ कर घासकी जडें पकड़कर यह उस वक्त नहीं मालूम होताथा कि आदमी हैं या बंदर सबके सब बात की बात में उसी राह पहाड़ों पर पहुंच दीवारों को डांक किले के अंदर दाख़िल हो गये। मरहठों ने जो सकायक आंँख मलते हुए अपने बिस्तरों से उठ कर दुश्मनों को किले के अंदर मौतको तरह सिरपर पाया छक्के छूट गये उसीदिन किला छोड़ भागे। उधर गोंडार्ड ने बस्सीन लिया और बम्बई को फ़ौज ने में पेशवा के सिपाहियों को भगाया इधर बंगाले की फोन ने सिरोंज में सेंधिया के लश्कर को एक और शिकस्त देदी लेकिन दखन में बखेड़ा बढ़ता देखकर और कौंसल वालों को अपने १७८२ ई० ख़िलाफ़ पाकर गवर्नर जेनरल ने सेंधिया से तो इस शर्त पर सुलह करली कि सिवाय उस इलाके के जो गोहद के राना को दिया गया था बाकी जो कुछ जमना पार अंगरेजोंके हाथ लगा था पेशवा को लौटा दिया जाय। और पेशवा से इस शर्त पर सुलह करली कि बस्सीन समेत जो कुछ अंगरेज़ों ने पुरंदर में सुलहनामा लिखेजाने के बाद फ़तह किया सब पेशवा को लोटा दिया जाय। और पेशवा कर्नाटकमें उनसब इलाकों को जो हैदरअली ने दबा लियेथे उससे अंगरेज़ों को दिलवा देवे। और सिवाय पुटगीज़ों के यांनी पुर्तगालवालोके और किसी फिरंगी को आने सतना में कक कारनार न करने