वारन् हेस्टिंग्ज़् पहला गवर्नर जेनरल
पहला गवर्नर जेनरल जो यहां मुक़र्रर हुआ वारन हेस्टिंगज़ था। यह सन् १७५० में नौकर होकर आयाथा और इस वक्त बंगाले की गवर्नरी के उहदे पर था।
वारन् हेस्टिग्ज़् ने जब देखा कि क्लाइव की तजवीज़ बमुजिब नव्वाब और कम्पनी की शराकत में हुकूमत रहनेसे कभी इंतिज़ाम दुरुस्त न होगा ज़िले जिलेमें अंगरेज़ी हाकिम भेज कर कलकत्ते में सदर बोर्ड अाफ़ रेवन्यू और सदरनिज़ामत और सदर दीवानी की अ़दालतें मुकर्रर कर दी इस में शक नहीं कि हिंदुस्तानी फिर भी अंगरेजी उहदेदारोंके शरीक रहे। लेकिन नौकर सब कम्पनी के होगये। कलकृरी और दीवानी के हाकिम का शरीक एक दीवान रहता था फ़ौजदारी के हाकिम के साथ ज़िले का क़ाज़ी मुफ्ती और मौलवी बैठता था। बोर्ड आफ रेवन्यू में एक हिंदुस्तानी रायरायांके खिताब से था।
अब ज़रा हाल शाहआलम बादशाह का सुनी इसके दिल में फिर दिल्ली के दर्मियान तख्त पर बैठने की हविस समायी। अंगरेज़ों ने कुछ मदद न की। इसने तुक्काजी हुलकर और महाजी सैंधिया के पास पयाम भेजा उन मरहठोंने सन् १७७१ में इसे दिल्ली लेजा कर तख़त पर बैठा दिया। और इलाहाबाद और कोड़े का इलाक़ा उस से ज़बर्दस्ती अपनेनाम लिखवा लिया। अंगरेज़ों ने इस बहाने कि अब ती आपहमारे दुश्मनों से यानी सरहठों से मिलगये इलाहाबाद और कोड़ा दोनों ज़बत कर के पचास लाख पर शुजाउद्दौला के हाथबेच डाला। और लार्ड क्लाइव ने जो तीनों सूबों की दीवानी के बाबत् छब्बीस लाख रुपया साल देने का क़रार लिख दिया था वह बिलकुल गोया पानी से धो डाला।
शुजाउद्दौला मुद्दत से फ़िक्र में था कि रुहेलखंड रुहेलों
से छीन ले क़ाबू न पाताया। अब लड़ाईका ख़र्च और चालीस १७७४ ई०