पटने की तरफ भागा। रास्ते में उस को फ़ौज से और अंग्रेजों से गढ़िया और उधवानाले में दो लड़ाइयांहुई क़ासिमअ़लीखां की तरफ़ से समझ जो साविक़ फ़रासीसियों केयही सार्जन्ठ था खूब लड़ा। लेकिन फ़तह अंगरेज़ों की रही इस खौफ़ से कि जगतसेठ अंगरेज़ों का मददगार है क़ासिमअ़लीखां ने उसे
हवालात में अपने साथ रक्खा जब मुंगेर से आगे बढ़ा जगत सेठ महताबराय और उस के भाई सरूपचंद को रास्ते में अपने हाथ से कत्ल कर डाला। साम्हने खड़ा करकेतीरों से मारा। उनके साथ एक उनका नमकहलाल खिदमतगार धुनी रहगया था। बहुतेरा समझाया। लेकिनसाथ न छोड़ा। जब क़ासिमअलोखां तीर चलाता। वह साम्हने भाकरखड़ा हो। जबवह मरकर गिरगयाहै तब दोनों भाइयोंके तीर लगा है। पटने पहुंच कर उस जामि ने दो सो के लगभग अंगरेज़ों को जिन्हें उसने कैद कर रक्खाया। कटवा डाला।
अंगरेजों ने कर्मनासा नदी तक उसका पीछाकिया निदान
वह इलाहाबाद में बादशाह के पास जाकर नवाब वज़ोरशुजा
उद्दौला अवध के सबेदार को कुछ फोन के साथ चढ़ालाया।
और पटने में अंगरेज़ों से खड़कर और शिकस्त खाकर फिर
भागा। अंगरेजों ने फिर पीछा किया। बक्सर में शुजा
छट्टोला से एक अच्छी लड़ाई हुई उसके साथ पचास साठ
हजार सिपाह को भीड़ भाड़ थी और अंगरेजों के साथ कुल
८५० गोरे और ०२१५ हिन्दुस्तामो सवार और पियादे लेकिन
शुजाउद्दौला को शिकस्त खाकर भागनाण्डा। उसके दो हज़ार
आदमी इस लड़ाई में काम आये बादशाह ने 'अंगरेज़ों को
इस फतह की मुबारकबाद दी और लिखा कि खूब हुआ
जा में अपने वज़ोर को केद से छूटा और फिर वह उस तारीख
से अंगरेजों को हिमायत में चला आया। अंगरेज़ी फ़ोज़
इलाहाबाद को तरफ़ बढ़ी। रास्ते में चनारगढ़ का किला
घेरा ज़ियादा बनारस में रहगयी।
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