पृष्ठ:इंशा अल्लाह खान - रानी केतकी की कहानी.pdf/३०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९
रानी केतकी की कहानी


आ पहुँचना कुँवर उदैमान का ब्याह के ठाट
के साथ दुल्हन की ड्योढ़ी पर

इस धूमधाम के साथ कुँवर उदैमान सेहरा बाँधे दूल्हन के घर तक आ पहुँचा और जो रीतें उनके घराने में चली आई थों, होने लगियाँ। मदनबान रानी केतकी से ठठोली करके बोली—"लीजिए, अब सुख समेटिए, भर भर झोली। सिर निहुराए, क्या बैठी हो, आओ न टुक हम तुम मिलके झरोखों से उन्हें झाँकें।" रानो केतकी ने कहा—'न री, ऐसी नीच बातें न कर। हमें ऐसो क्या पड़ी जो इस घड़ी ऐसी मेल कर रेल पेल ऐसी उठें और तेल फुलेल भरी हुई उनके झाँकने को जा खड़ी हों।" मदनवान उसकी इस रुखाई को उड़नझाई की बातों में डालकर बोली—

बोलचाल मदनवान की अपनी बोली के दोनों में
यों तो देखो वा छड़े जो वा छड़े जी वा छड़े।
हम से जो आने लगी हैं आप यो मुहरे कड़े॥
छान मारे बन के बन थे आपने जिनके लिये।
वह हिरन जोवन के मद में हैं बने दूल्हा खड़े॥
तुम न जाओ देखने को जो उन्हें क्या बात है।
ले चलेंगी आपको हम हैं इसी धुन पर अड़े॥
है कहावत जी को भावे और यो मुदिया हिले।
झाँकने के ध्यान में उनके हैं सब छोटे बड़े॥
साँस ठंडी भरके रानी केतकी बोली कि सच।
सब तो अच्छा कुछ हुआ पर अब बखेड़े में पड़े॥