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रानी केतकी की कहानी

बनों में फिरा करें। कहीं न कहीं ठिकाना लग जायगा।" गुरू ने कहा—अच्छा।


हिरन हिरनी का खेल बिगड़ना और कुँवर उदैमान
और उसके माँ-बाप का नए सिरे से रूप पकड़ना

एक रात राजा इंदर और सोसाई महेंदर गिर निखरी हुई चाँदनी में बैठे राग सुन रहे थे, करोड़ों हिरन राग के ध्यान में चौकड़ी भूल श्रास पास सर झुकाए खड़े थे। इसी में राजा इंदर ने कहा—"इन सब हिरनों पर पढ़कै मेरी सकत गुरु की भगत फुरे मंत्र ईश्वरोवाच पढ़के एक एक छींटा पानी का दो।" क्या जाने वह पानी कैसा था। छींटों के साथ हो कुँवर उदैभान और उसके माँ-बाप तीनों जने हिरनों का रूप छोड़कर जैसे थे वैसे हो गए। गोसाईं महेंदर गिर और राजा इंदर ने उन तीनों को गले लगाया और बड़ी आवभगत से अपने पास बैठाया अर वही पानी घड़ा अपने लोगों को देकर वहाँ भेजवाया जहाँ सिर मुड़वाते ही ओले पड़े थे।

राजा इंदर के लोगों ने जो पानी के छोंटे वही ईश्वरोवाच पढ़ के दिए तो जो मरे थे, सब उठ खड़े हुए; और जो अधमुए भाग बचे थे, सब सिमट आए। राजा इंदर और महेंदर गिर, कुँवर उदैमान और राजा सूरजभान और रानी लछमीबास को लेकर एक उड़न खटोले पर बैठकर बड़ो धूमधाम से उनको उनके राज पर बिठाकर ब्याह का ठाट करने लगे। पसेरियन हीरे मोती उन सब पर से निछावर हुए। राजा सूरजभान और कुँवर उदैभान और रानी लछमीबास चितचाही असीस पाकर फूली न समाई और अपने सारे राज को कह दिया—'जेंबर भौंरे के मुँह खोल दो। जिस जिस को जो जो उकत सूझे, बोल दो। आज के दिन