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रानी केतकी की कहानी

यह कैसी चाहत जिसमें लोह बरसने लगा और अच्छी बातों को जो तरसने लगा। कुँवर ने चुपके से यह कहला भेजा—"अब मेरा कलेजा टुकड़े टुकड़े हुआ जाता है। दोनों महाराजाओं को आपस में लड़ने दो। किसी डौल से जो हो सके, तो तुम मुझे अपने पास बुला लो। हम तुम मिलके किसी और देस निकल चलें; होनी हो सो हो, सिर रहता रहे, जाता जाय।" एक मालिन, जिसको फूलकली कर सब पुकारते थे, उसने उस कुँवर की चिट्ठी किसो फूल की पंखड़ी में लपेट सपेटकर रानी केतकी तक पहुँचा दी रानी ने उस चिट्ठी को अपनो आँखों लगाया और मालिन, को एक थाल भर के मोती दिए; और उस चिट्ठी की पीठ पर अपने मुँह की पीक से यह लिखा— "ऐ मेरे जी के गाइक, जो तू मुझे बोटी बोटी कर के चील कौवों को दे डाले, तो भी मेरी आँखों चैन और कलेजे सुख हो। पर यह बात भाग चलने को अच्छी नहीं। इसमें एक बाप-दादे को चिट लग जाती है और जब तक माँ-बाप जैसा कुछ होता चला आता है उसी डौल से बेटे बेटी को किसी पर पटक न मारें और सिर से किसी के चेपक न दें, तब तक यह एक जी तो क्या, जो करोड़ जी जाते रहें तो कोई बात हमें रुचती नहीं।"

यह चिट्ठी जो बिस भरी कुँवर तक जा पहुँची, उस पर कई एक थाल सोने के हीरे, मोती, पुखराज के खचाखच भरे हुए निछावर करके लुटा देता है। और जितनी उसे बेचैनी थी, उससे चौगुनी पचगुनी हो जाती है। और उस चिट्ठी को अपने उस गोरे डंड पर बाँध लेता है।

आना जोगी महेंदर गिर का कैलास पहाड़ पर से और कुँवर उदैमान और उसके माँ बाप को हिरनी हिरन कर डालना

जगतपरकाल अपने गुरू को जो कैलास पहाड़ पर रहता था, लिख भेजता है—कुछ हमारो सहाय कीजिए। महाकठिन बिपता-