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६६ आवारागर्द उस दिन मै रात को लौट नहीं सकता था। मैंने फोन में इस बात की सूचना विजली को दे दी थी। मेरे मेहमान को कोई कष्ट न हो, तथा उन्हें खाना खिलाकर सुला दिया जाय, यह भी कह दिया था। आज रात को घर न आ सकूँगा, यह जानकर मेरे मेहमान की धुकधुकी बढ़ गई । बिजली ने उन्हें सव सूचना दी। वह गरमा-गरम खाना ले आई। खाने के बाद एक कप काफी भी दे गई। इसके बाद ही जब वह उनके शयनगृह के द्वार पर बिजली का बटन पकड़कर खड़ी हुई, और मुस्कराकर बत्ती बुझाने को कहा; तो मेहमान महाशय ने लपककर, उसका हाथ पकड़कर चूम लिया। विजली कुछ लाज, कुछ आदर से मुक्की, शिष्टाचार के खयाल से नाराजी मिश्रित तनिक मुस्कान उसके होठों पर आई । वह बत्ती बुझाकर अपने कमरे में जा सोई। वह कभी अपना कमरा बंद करके नहीं सोती थी। वह दिन- भर की थकी-मॉदी सो रही थी। दूध के फेन के समान उसके बिछौने पर चद्रमा की उज्ज्वल, नीली किरणे पड़ रही थीं। उसके सुनहरे बाल बिखर रहे थे, और अर्ध-नग्न वक्षःस्थल सॉस के साथ उठ बैठ रहा था। गर्मी थी, और उसके शरीर पर सोने के समय की हलकी पोशाक थी। मेरे मनचले युवक मेहमान की आँखों मे नींद न थी। बिजली की लहर उनके मन मे लहरा रही थी। वह साहस करके उठे। जूता उन्होंने नहीं पहना। वह पंजे के बल ऊपर की मंजिल पर चढ़ गए। उन्हें मालूम था कि वह किस कमरे म सोती है। वहाँ जाकर उन्होंने विजली का उन्मुक्त सौंदर्य आँख भर देसा। वह मुग्ध होकर देखते रह गये उन्होंने और भी साहस किया, वह भीतर घुस गये बंद कर दिया, और बिजली के पलंग पर बैठ गए। !