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६४ आवारागर्द इस बीच में मैंने उसे कभी विनय-हीन नहीं देखा। वह सदा हँसती है । अपने काम मे उसने कभी प्रमाद नहीं किया। वह बिजली की भांति फुर्तीली है। उसने कभी मुझे असतुष्ट नहीं किया। वह मुझे स्वामी कहकर पुकारती है, और मैं उसे उसका नाम लेकर । कभी-कभी प्यार मे आकर मै उसे 'बिजली' कहता हूँ। बिजली का अर्थ मैने उसे जापानी भाषा में समझा दिया वह इस हिन्दोस्तानी नाम से बहुत खुश है। जिस दिन मै उसे इस नाम से पुकारता हूँ, वह समझ लेती है, आज मै उस पर बहुत प्रसन्न हूँ। और, वह उस दिन खूब गुन-गुनाकर गाती हैं, मेरे बिछौने पर नई चादर बिछाती है, तकिए पर सुगंधित सेट छिड़क देती है, और मै शयन करने जाता हूँ, तब वह द्वार पर खड़ी होकर मधुर हास्य से, धीमे स्वर में, बत्ती बुझा देने की आज्ञा मॉगती है । आज्ञा मिलने पर बत्ती बुझाकर, दुःख की हास्य-रेखा की भॉति अपने सोने के कमरे में चली जाती है। ( ३ ) पंजाब की एक बड़ी फर्म से हमारा व्यापार है। वह फ़र्म रेशम की बड़ी करारी फर्म है। महायुद्ध के कारण भारत मे रेशम के व्यापार को चार चाँद लग रहे हैं। मॉग के मारे नाक में दम है। सुविधा के ख्याल से इस फर्म के एक एजेंट जापान आए । वह पन्द्रह दिन से मेरे घर ठहरे हैं। वह एक ग्रेजुएट हैं। सुन्दर हैं, युवक हैं, अप-टु-डेट हैं। दांत बहुत सुन्दर हैं, बाल और भी साफ। स्त्रियों के बेहद शौकीन हैं। व्यापार की योग्यता तो जो हो, सो ठीक है, स्त्रियों की परख की भारी योग्यता व्यक्त करते हैं। वह आए तो व्यापार करने हैं, हमारा उनका व्यापार-सम्बन्ध है भी, पर वह बाते सदैव स्त्रियों की किया करते हैं। उनके कहने का मतलब यह कि उन्होंने भारतवर्ष मे सुना था कि जापान ,