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तेरह बरस बाद रह-रहकर अमला के मन में यह होता था कि वह उसके पति नहीं हैं । पति का नाम मन में उदय होते ही जो रोमांचकारी परिवर्तन उसके शरीर में होता था, वह उन्हें देखकर नही होता था। घर मे और भी औरतें थीं। दो ननँदे थीं-एक विधवा, एक फुआरी। एक जिठानी थी, एक सास । इन के सिवा कुछ दिन तो पास-पड़ोसिनों का तांता बँधा रहा। उन सब ने बारीक नज़र से अमला को देखा, जैसे कोई भूली चीज़ पहचानी जा रही हो- चोरी के माल की शिनाख्त हो रही हो । अमला को यह सब बहुत बुरा लगा। उसे देख-देख कर जो औरते चुपचाप संकेत का एकाध वाक्य कहती थी, पास-पड़ोसिने उसकी सास को जिन शब्दों में बधाई देती थीं, उन सवसे तो खीझकर अमला रोने लगी। उसने सोचा, जैसे मैं मोल खरीदा वर्तन हूँ, हर कोई ठोक-बजाकर देखता है कि ठीक है या नही ? तब इस सब अप्रिय चातावरण में एक प्रिय वस्तु थी, वह उसकी कुमारी छोटी ननँद कुंद । वही सब से पहले पालकी में अमला के पास घुस बैठी थी। चही अमला का घूघट हटाकर हँसी थी। वही उसका आँचल पकड़ घर मे खींच लाई थी। वही दिन-भर अमला के पास रह- कर पल-पल में उसे खाने-पीने, सोने-बैठने को पूछ रही थी। वह एक प्यारी-सी तितली थी। अमला ने देखा, जैसे वह कुछ उसी का जरा गोरा एक संस्करण है। अभी दो दिन पहले पिता के घर में अमला ऐसी ही तो थी । जो हो, अमला की सबसे प्रथम घनिष्ठता कुंद से हुई । कुद का आसरा लेकर अमला उस घर मे रहने लगी। धीरे-धीरे सब कुछ सात्म्य हो गया । सब कुछ सम हो गया। अमला ने सास की सुजन मूर्ति को समझ लिया, पति के सौजन्य को भी जान लिया। पति-पत्नी आशातीत ढग से झटपट ही पुराने होने लगे। उनके जीवन मे गदह-पचीसी के ६