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आवारागर्द


पत्र का क्या जवाब दूँ, कुछ भी समझ न पाया। पत्र किसी भाँति लिखा जा सकता है, पर फोटो का क्या किया जाय? क्या इस अनिन्द्य सुन्दरी को मै अपने उजड़े हुए वेदनाओं और निराशाओं की रेखाओं से भरे मुख का चित्र भेजूँ? इसे देख कर क्या उसका कोमल भावुक विश्वस्त हृदय टुकड़े-टुकड़े न हो जायगा? क्या उसकी उल्लासपूर्ण आशा का तार न टूट जायगा? मैंने किसी प्रकार पार पाने में असमर्थ होकर मिस्टर लाल को एक दिन के लिए चले आने का तार भेज दिया। मिस्टर लाल आये और पत्र को देख कर हँसने लगे। उनके हँसने से चिढ़ कर मैने कहा—'आपने एक अत्यन्त अपमानजनक परिस्थिति में मुझे डाल दिया है, अब कहिए क्या किया जाय? यह फोटो का मामला सबसे अधिक कठिन है, मै अपना फोटो किसी हालत में उसे नही भेज सकता।' मिस्टर लाल ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा—'तो फिर फ़ोटो के लिए कोई बहाना बना दिया जाय? अभी सिर्फ एक बढ़िया-सा प्रेम भरा पत्र ही भेज दिया जाय?' मिस्टर लाल की यह तजबीज़ मुझे बिलकुल नहीं रुची। भला फ़ोटो के लिए कौन-सा बहाना ढूँढ़ा जा सकता है, फिर उस बहाने से फायदा? वहाँ से फिर भाग आयेगी? इसके सिवा जो यह अद्भुत मैत्री सम्बन्ध जोड़ा गया है, वह टाल-टूल करने के लिए नहीं, प्रगाढ़ प्रेम के लिए।

मिस्टर लाल ने अन्त में सोच-विचार कर एक तजबीज़ पेश की और मेरे मन में न जाने कैसा कुछ नटखटपन समाया कि मैंने वह स्वीकार कर ली। एक बढ़िया फ़ोटोग्राफ़र से मिस्टर लाल का फोटो उतरवाया और अपनी सारी सहृदयता खर्च करके मैंने एक पत्र लिखा। फ़ोटो के नीचे कांपते हाथों से मैंने अपना नाम लिख दिया। पत्र और वह फोटो रजिस्ट्री द्वारा भेज दिया गया।