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मरम्मत

कर नहीं पुकारोगे? 'रज्जी' नहीं कहोगे? बदमाश, तुम मित्र की बहिन की प्रतिष्ठा नही रख सके? तुम जैसे जानवर किसी भले घर मे जाने योग्य, किसी की बहू-बेटी से खुल कर मिलने योग्य हो सकते हैं?" रजनी ने यह कह कर दिलीप के दोनो कान पकड़ कर खींच लिये और तड़ातड़ ५-७ तमाचे उसके मुँह पर रसीद करके कहा "कहो, प्रेम अब कहां है? मुझ सी लड़की कहीं दुनिया में है या नहीं?"

"रजनी देवी, मै आप की शरण हूँ।"

"अच्छा, अच्छा! मगर तुम तो शायद मेरे बिना जी भी नहीं सकोगे! जाओ, कुये, नदी मे डूब मरो। क्या तुम भैया को मुँह दिखा सकोगे?" दिलीप चुपचाप धरती पर बैठे रहे।

रजनी ने लात मार कर कहा "बोल रे बदमाश वोल!"

दिलीप ने गिड़गिड़ा कर कहा "धीरे, रजनी देवी, लोग सुन लेंगे तो यहाँ भीड़ हो जायगी।"

रजनी ने कहना शुरू किया "कुछ पर्वाह नहीं। हाँ, तुम क्या चाहते हो कि स्त्रियों को तुम इसी प्रकार फुसलाओ। वे या तो पढ़ें मे घुग्घू बनी बैठी रहें, और यदि स्वाधीन वायु में जीना चाहें तो तुम्हारे जैसे साँपों से वे डसी जायँ? क्यों? भैया के साथ विवाद मे तुम सदा मेरा पक्ष लेते थे सो इसी लिये? कहो? तुम समझते हो भैया अनुदार हैं, नहीं जानते उन्होंने मेरा, मेरी आत्मा का निर्माण किया है। यह उन्हीं का साहस था कि तुम्हें अकपट भाव से उसी भाँति मेरे सम्मुख उपस्थित किया जिस भाँति वे स्वयं मेरे सम्मुख आते हैं। पर तुम नीच लम्पट दो दिन मे ही वहिन के समान अपने मित्र की बहिन से प्रेम करने लगे? कहो, तुम्हारे घर कोई बहिन है या नही? इसी भाँति तुम उसे पृथ्वी की अद्वितीय स्त्री कहते हो?"