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मरम्मत ४७ , अपने सम्मान की रक्षा के लिए मर्दो का आसरा नहीं तकना चाहिए। वह जब भाई से इस विषय पर जोर-शोर से विवाद करती थी, तब आवेश मे उसका मुंह लाल हो जाता था। राजेन्द्र को तो उसे इस प्रकार उत्तेजित करने से आनन्द आता था, किन्तु दिलीप महाशय अकारण ही उसका समर्थन करते-करते कभी-कभी तो अपना व्यक्तित्व ही खो बैठते थे। रजनी ने उन महाशय को प्रेम का खरा सबक सिखाने का पक्का इरादा कर लिया। ये स्कूल कॉलेज के गुण्डे लड़कियो को मिठाई से ज्यादा कुछ समझते ही नही। देखते ही उनकी लार टपक पड़ती है, वे निर्लज्ज की भॉति उनकी मिलनसारी, उदारता और कोमलता से लाभ उठाते हैं। रजनी होठ काटकर यह सोचने लगी कि आखिर ये पुरुप स्त्रियों के अपमान का ऐसा साहस ही किस लिये करते है। स्त्रियों के सामने जमनास्टिक की कसरत सी करना तो इन लफङ्गों का केवल नाटक है। रजनी देख चुकी थी कि उसे अपने कालेज-जीवन में इन उद्दण्ड युवकों से कितना कष्ट भोगना पड़ा था-वे पीठ पीछे लड़कियों के विषय मे कितनी मनमानी अपमानजनक वाते किया करते है। उनकी मनोवृत्तियाँ कितनी गन्दी होती हैं। उसने पहचान लिया कि भैया के मित्र भी उसी टाइप के है। और उनकी अच्छी तरह मरम्मत करके उनके इस टपकते हुए प्रेम को हवा कर देने की उसने प्रतिज्ञा कर ली। उसने अपनी सहायता के लिए घर की युवती दासी दुलारी को मिलाकर सब प्रोग्राम ठीक-ठाक कर लिया। उस दिन राजेन्द्र पिता के साथ देहात मे जमींदारी की कुछ जरूरी झझट सुलझाने गये थे। घर मे गृहिणी, नौकर-नौकरानी ही थीं, गृहिणी पुत्री को इतना स्वतन्त्र देखकर बड़बडाती तो थी,