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डाक्टर साहब की घड़ी


मैं घबराकर सीधा उनके घर पहुँचा। एक कोहराम मचा था। भीड़ को पार करके मै सूबेदार साहब के पलग के पास गया। अभी वे होश में थे। मुझे देखकर टूटते स्वर मे उन्होंने कहा "घड़ी मैंने आपकी चुराई थी डॉक्टर साहब, परन्तु मेरी इज्जत बचाकर जीवन भर मे जो कुछ मैंने आपकी भलाई की थी उसका पूरा बदला आपने चुका दिया। लीजिए मेरे हाथ से अपनी घड़ी ले जाइये। अब मै जिन्दा नही रह सकता। परन्तु आप इस चोर सूबेदार को भूलियेगा नही। और उसे माफ कर देने की कोशिश कीजिएगा।"

सूबेदार साहब की आँखे उल्टी-सीधी होने लगी। अब वास्तव में कुछ भी नहीं हो सकता था। मैंने चुपके से घडी जेब में डालली, और सब की नजर बचाकर आँखे पोंछ ली। कुछ मिनटों में ही सूबेदार ने दम तोड़ा और मैं जैसे तैसे उनके घरवालों को दम दिलासा देकर डाॅक्टरी गम्भीरता बनाये अपने घर आ गया।

डॉक्टर ने एक गहरी सांस ली और एक बार मित्रों की ओर, और फिर उस घड़ी की ओर देखा। सभी मित्रों की आँखे गीली थीं। और देर तक किसी के मुँह से आवाज़ नहीं निकली।